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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. १ सु. ६ अकर्म जीवगतिस्वरूपनिरूपणम् २८३ प्रज्ञाप्यते । कथं खलु भदन्त ! बन्धच्छेदनतया अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते ? गौतम ! तथा नाम कलशिम्बलिका इति वा, मुद्गशिम्वलिका इति वा, मापशिम्बलिका इति वा, शाल्मलिशिम्बलिका इति वा, एरण्डमिञ्जिका इति वा, उष्णे दत्ता शुष्का सती स्फुटित्वा खलु एकान्तमन्तं गच्छति, एवं खल गौतम ! बन्धनच्छेदनतया अकर्मणः गतिः प्रज्ञाप्यते । कथं खलु भदन्त ! अकम्मस्स गई पण्णायइ) तो हे गौतम ! इसी तरहसे कर्म रहित भी जीवकी अनासक्त होनेके कारण, रागरहित होनेके कारण, तथा ऊर्ध्वगमन स्वभाववाला होनेके कारण गति कही गई है । (कहं णं भंते ! बंधणळेयणयाए अकम्मस्स गई पण्णाय) हे ! बंधन छेद हो जानेसे कर्मरहित जीवकी गति किस तरह से कही गई है? (गोयमा) हे गौतम! ( से जहानामए कलसिंबलियाइ वा मुग्गसिंबलियाइ वा, माससिंवलियाह वा सिंबलिंसिंबलियाह वा एरंडर्मिजियाइ वा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी फुडित्ताणं एगतमंतं गच्छइ, एवं खलु गोयमा ! बंधणछेयणयाए अकम्मस्स गई पण्णीय) जैसे कल शिम्बलिका-मठरकी फली, मुंगकी फली अथवा उडदकी फली, शाल्मलिकी फली या एरण्डकी फली जिस प्रकार सूर्य के आतपमें रहने पर जब बिलकुल सूखजाती है तब वह चटक कर जल्दी से पृथिवीके किसी एक प्रदेश पर गिर जाती है, इसी तरहसे हे गौतम कर्मरूप बंधन के छिदजाने पर कर्मरहित जीवकी गति होती है । गई पण्णायइ) तो हे गौतम! मे प्रभा अनासक्त होवाने रखे, रागरडित હેવાને કારણે તથા ઉ་ગમનના સ્વભાવવાળા હાવાને કારણે કરહિત જીવને પણુ गतिशील ४हेवामां यान्ये। छे. ( कहं णं भंते! बंधणद्वेयणयाए अकम्मस्स गई पुण्णाय) हे अहन्त ! उर्भ हाई स्वाथी उर्भरहित मनेसा लवनी गति કેવી કહી છે एवं खलु गोयमा ! (गोयमा !) हे गौतम! ( से जहा नामए कलसिं बलिया वा, माससिंवलियाइ वा, सिंबलिंसिंबलियाइ वां, उन्हे दिणा का समाणी फुडित्ताणं एगंतमंतं गच्छइ, बंधण छेणया अम्मस गई पण्णाय) पटायानी सिंग, भगनी सिंग, અડદની સિગ, શામલિ ( એક પ્રકારનુ વ્રુક્ષ) ની સિગ અને એરંડી જેમ સૂના તડકામાં રહીને જ્યારે બિલકુલ સુકાઈ જાય છે ત્યારે ફાટેછે અને તેનાં ખીજને ઉડાડતી જમીનના કાઇ પણ એક પ્રદેશ પર આવીને પડે “ હે ગૌતમ ! કર્રરૂપ બંધન છેદાઈ बलियाइ वा, मुग्गसिं एरंडमिंजियाइ वा,
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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