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________________ २५८ भगवती सूत्रे 'छाया - किंसंस्थितः खलु भदन्त ! लोकः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! सुप्रतिष्ठकसंस्थितः लोकः प्रज्ञप्तः, अधोविस्तीर्णः यावत् - उपरि ऊर्ध्वं मृदङ्गाकार संस्थितः, तस्मिंश्च खलु शाश्वत् लोके अधः विस्तीर्णे यावत् उपरि ऊर्ध्वं मृदङ्गाकारसंस्थितः लोकसंस्थानवक्तव्यता 'किंसंठिए णं भंते ! लोए पण्णत्ते ?' इत्यादि । सूत्रार्थ- (किंसंठिए णं भंते ! लोए पण्णत्ते ) हे भदन्त ! लोकका संस्थान आकार कैसा कहा गया है ? (गोधमा ) हे गौतम ! (सुपरट्टगसंठिएलोगपण हे विधिन्ने जाव उपि उड्ढं मुइंगागारसंठिए) लोकका आकार जिसके ऊपर कलश स्थापित किया है ऐसे अधोमुखवाले शराव- दीपक के समान है । नीचे दीपक रख दिया जावे और उसके ऊपर कलश रख दिया जावे तो इस स्थिति में जो आकार बनता है ठीक ऐसा ही आकार इस लोकका है। इसी बातको 'हेट्ठा वित्थिन्ने जाव उपि उदं मुइंगागारसंठिए' इस सूत्रांश द्वारा प्रकट किया गया है कि यह लोक यावत् नीचे में विस्तीर्ण हो जाया है और ऊपर में उर्ध्वमुखवाले मृग के जैसा हो गया है । ( तंसिच णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा वित्थिनांस जाव उपि उड्ढं मुहंगागारसंठियंसि ) इस प्रकार शाश्वत इस अधोविस्तीर्णतावाले तथा ऊपर में उर्ध्वमुखवाले मृदंग आकार जैसे લેાકસ સ્થાન વતવ્યતા— 'fkúfsg qj við! àìg quoà ? ' v«ule सूत्रार्थ - (किंसंठिएणं भंते ! लोए पण्णत्ते ' ? हे महन्त ! खेोउनु संस्थान (माहार) ठेवु उछु छे? (गोयमा ! ) हे गौतम! ( सुपट्टगसंठिए लोग पण्णत्ते हा विन्ने जात्र उपि उड़ मुइंगागारसंठिए ) नेना उपर उणेश भूक्ष्या होय એવાં ઊંધા પાડેલા શકેારાના જેવે લેાકને આકાર છે એટલે કે નીચે શકેરાને ઊંધું પાડીને રાખવામાં આવે અને તેના ઉપર કળશને ગાઠવવામાં આવે તે જેવે આકાર અને છે, એવાજ આકાર આ લેાકના છે. એજ વાતની વધુ સ્પષ્ટતા આ સૂત્રાંશ દ્વારા ४२वाभा भावी छे (हेट्ठा वित्थिन्ने जात्र उपिं उड़ मुइंगागारसंठिए ) मा सो નીચેના ભાગમા વિસ્તીણુ છે, વચ્ચેથી સ કી (સંકુચિત ) છે અને ઉપરના भागभां उर्ध्वभुमवाजा भृहगना नेवा भारवाणी हे. ( तंसि च णं सासयंसि लोगंसि ट्ठा वित्थिन्नंसि जाव उपिं उड्ढं मुइंगागाग्संठियंसि ) मा अक्षरना નીચેથી વિતીણુ અને ઉપરથી ઉ મુખવાળા મૃદંગના જેવા આકારવાળા આ શાશ્વત
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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