SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - भगवतीमत्रे गाथा-'जीवानां च मुखं दुःखं, जीवो जीवति, तथैव भविकाच, एकान्तदुःखवेदनाऽऽत्मना आदाय केवली ॥ १ ॥ सदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ५ ॥ टीका-'आत्मना आदाय' इत्यस्याधुनवोक्तत्वेन आदानसावाद केवलिन आदानविषये विशेषवक्तव्यतामाह-'केबली णं भंते' इत्यादि। केवली गं भंते ! आयाणेहि जाणइ, पासइ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! केली केवलज्ञानी खल्ल आदानः आदीयते गृहन्यते पदार्थः एभिः इति आदानानि इन्द्रियाणि तैः इन्द्रियद्वारा इत्यर्थः जानाति पश्यति ? भगवानाह-'गोयमा ___ गाथार्थ-जीवों के सुख दुःख का, जीव चैतन्य रूप है या चैतन्य -जीवरूप है इस विषय का, जीव के प्राणधारण का, भयसिद्धिक का, एकान्त दुःखवेदन का, आत्म द्वारा पुद्गलों के ग्रहण करने का, तथा केवली के जानने देखने का-इन सब विषयों का- इस दशवें १० उद्देशक में विचार किया गया है। टीकार्थ- 'अत्तमायाए' आत्मद्वारा ग्रहण करके ऐसा जो अभी कहा गया है. सो इसी आदान (इन्द्रिय)के साधर्म्य को लेकर केवली के आदान (इन्द्रिय)के विषय में सूत्रकार विशेष वक्तव्यता का कथन करते हैं- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐमा पूछा है कि केवली णं भंते !' हे भदन्त ! केवली भगवान् 'आयाणेहिं' इन्द्रियों द्वारा 'जाणइ पासई' जानते और देखते हैं क्या? 'आदीयते गृह्यते पदार्यः एभिः' इति आदानानि' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिनके द्वारा पदार्थ ग्रहण किये - ગાથાર્ચ– જીવોનાં સુખદુઃખનુ, જીવ ગૌતન્યરૂપ છે કે ચૈતન્ય જીવરૂપ છે તે વિષયન, જવના પ્રાણધારણનુ, ભવસિદ્ધિકનુ, એકાન્ત દુખવેદનાનું, આત્મ દ્વારા પુદ્ગલેને ગ્રહણ કરવાનું, તથા કેવલીનુ જાણવા દેખવાનું, આ બધા વિષયેનું આ દસમાં ઉદ્દશકમાં પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે An:- 'अत्तमायाए' माम द्वारा डा ४शन मे पडसाना सूत्रमा કહેવામાં આવ્યું છે તે એ જ આદાન (ઈન્દ્રિયો)ના સાધભ્યની અપેક્ષાએ કેવલીના આદાન ઈન્દ્રિ)ને વિષયમાં સૂત્રકાર વિશેષ વકતવ્યતાનું કથન કરે છે– આ વિષયને भनुनक्षीने गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेवे। प्रश्न पूछे छे , 'केवली णं भंते ! मात! वही भगवान 'आयाणेहि माहानेन्द्रियो द्वारा जाणई पासइ ?' શું જાણે છે અને દેખે છે? 'आदीयं ते गृह्यते पदार्थः एभिः इति आदानानि' इद्रीयाणि मा व्युत्पत्ति
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy