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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ.१० मु.२ जीवस्वरूपनिरूपणम् २१० भंते ! असुरकुमारे, अमरकुमारे जीवे ? गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवः खलु किम् असुरकुमारः ? असुरकुमारो वा एवं किं जीवः ? भगवानाह-'गोयमा ! अमुरकुमारे ताव नियमा जीवः, जीवः पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे' हे गौतम ! अमुरकुमारस्तावद् नियमाद् अवश्यमेव जीवः, जीवस्तु पुनःस्यात् कदाचिद् असुरकुमारो भवति, स्यात् कदाचित् न असुरकुमारः, कदाचिद् अमरकुमारभिन्नोऽपि भवतीत्यर्थः, ‘एवं दंडओ भाणियब्बो, प्राणों को-पांच ५ इन्द्रिय तीन ३ बल और आयु तथा श्वासोच्छ्वास ये दश प्राण होते हैं-इनमें से अपने २ योग्य प्रोणों को जो धारण करता है वह जीव है- नारक जीव १० प्राणों को धारण करता है इसलिये वह जीव रूप है । अपने २ योग्य प्राणों से जीने वाला जो जीव है वह जब नरकप्रायोग्य कर्म का बंध करता है- तब वह नारकपर्याय पाता है और जब उसके नरकमायोग्य कर्म क बध नहीं होता है तब वह नारकपर्याय वाला भी नहीं होता है । 'जीवे णं भंते ! असुरकुमारे असुरकुमारे जीवे?' गौतम प्रभुसे पूछ रहे हैं कि हे भदन्त ! जो असुरकुमार देव है वह जीव रूप है कि जीव असुरकुमार देवरूप है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-'गोयमा' हे गौतम ! 'असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे' असुरकुमार जो देव है वह तो नियम से जीव रूप है पर जो जीव है वह असुरकुमार देव हो भी और नहीं भी हो, अन्य और अस्तुरकुमार से भिन्न પ્રામાના પિતા પિતાને ગ્ય પ્રાણીને જે ધારણ કરે છે તેને જીવ કહે છે પિત પિતાને યોગ્ય પ્રાણેથી જીવનારો જે જીવ હોય છે, તે જ્યારે નારક પર્યાયને ચેગ્ય કર્મને બધ કરે છે, ત્યારે નારપર્યાય પ્રાપ્ત કરે છે પણ જ્યારે તે નારકપર્યાયને યોગ્ય કમને બધ કરતું નથી, ત્યારે તે નારક પર્યાયમા ઉત્પન્ન થતો નથી गौतम स्वामीना प्रश्न- 'जीवेणं भंते ! असुरकुमारे अमुरकुमारे जीवे ?' હે ભદતા જે અસુરકુમારદેવ છે તેણું જીવરૂપ હોય છે ૬ કે જીવ અસુરકુમાર દેવરૂપ હોય છે? उत्तर- 'गोयमा! 8 गौतम ! 'अमरकुमारे ताव नियता जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असरकुमारे' मसु२४भा२ हे तो नियमथी । વરૂપ હોય છે, પણ જે જીવ છે તે અસુરકુમાર દેવ હોય છે પણ ખરે અને ન પણ होय - मेटले मछुमार सिवायनी अन्य पर्याय३ प ल श छे. ' एवं
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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