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________________ अमेयचन्द्रिकाटीका श.६ उ.१० २.२ जीवस्वरूपनिरूपणम् २११ "नाम् । जीवति भदन्त ! जीव, जीवो जीवति ? गौतम ! जीवति तावद् नियमाद् जीवः, जीवः पुनःस्याद् जीवति, स्याद् न जीवति । जीवति भदन्त ! नैरयिका, नैरयिको जीवति ? गौतम ! नैरयिकस्तावद् नियमाद् जीवति, जीवति पुनःस्याद् नैरयिकः, स्याद् अनैरयिकः । एवं दण्डको ज्ञातव्यः यावत् सय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे) असुरकुमार तो नियम से जीवरूप है, पर जो जीव है वह असुरकुमार नहीं भी हो सकता है। ( एवं दंडओ भाणियन्वो जाव वेमाणियाणं) इस तरह से दण्डक यावत् वैमानिक तक कहलेना चाहिये। (जीवइ भंते ! जीवे, जीवे जीवइ ?) हे भदन्त ! जो प्राणधारण करता है वह जीव है कि जीव है वह प्राण धारण करता है? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवइ ताव नियमा जीवे जीवे पुण सिय जीवह सिय णो जीवइ) जो जीता है-प्राणधारण करता है-वह तो नियम से जीव है पर जो जीव है वह प्राणों-१० द्रव्यप्राणों को धारण करता भी है और नहीं भी करता है। (जीवइ भंते ! नेरइए, नेरइए जीवइ) हे भदन्त ! जो जीता है--प्राणधारण करता है वह नैरयिक कहलाता है कि जो नयिक होता है वह प्राण धारण करता है ऐसा कहा जाता है? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरइए ताव नियमा जीवह, जीवइ पुणसिय नेरइए सिय अनेरइए) जो नैरयिक होता है वह तो नियम से प्राणों कुमारे) असु२शुभार तो समय ७१ ३५०५ छ, पण २ ७५ हाय छ त मसुरशुभार डाई ५ श छ भने मसुरशुभा२ नयी पार डा शो [एवंदंडओ भाणियव्यो जाव वेमाणियाणं से प्रभा भनि। -तन ६४४ ४ नये. जीवइ भंते ! जीवे, जावे जीवइ ? ] 3 महन्त ! के प्राए! धारय ४३ छे ते ७५ छ, रे ७१ छे ते प्राण पाए ४२ छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! [जीवई ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवइ सिय णो जीवइ] २७वे छे-प्राणु धारण ४२ छતે તે અવશ્ય જીવ છે, પણ જે જીવ હોય છે તે પ્રાણને – ૧૦ દ્રવ્ય પ્રાણેને ધારણ ४२ या छ भने नयी पार ४रतो ( जीवइ भंते ! नेरइए, नेरइए जीवइ ) હે ભદન્ત ! જે પ્રાણ ધારણ કરે છે અથવા જીવે છે તેને નરયિક કહેવાય છે, કે જે यि हाय छे ते प्राणु धार! ४२ छ मेनु उपाय छ ? [गोयमा !] गौतम! [नेरइए ताव नियमा जीवइ, जीवइ पुण सिय नेरइए. सिय अनेरइए] જે નૈરયિક (નારક) હોય છે તે તો અવશ્ય પ્રાણેને ધારણ કરે છે, પણ જે પ્રાણોને ધારણ કરનાર હોય છે તે નરયિક હોય છે પણ ખરો અને નથી પણ હતા
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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