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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ. ८ . २ आयुर्ब न्धस्वरूपनिरूपणम् -१३१ : गोयमा ! जाइनाम निहत्ता उया वि, अणुभागनाम निहता या चि. " " हे गौतम! जीवाः खलु जातिनामनिधत्तायुष्काः अपि - यावत - अनुभागनामनिधत्तायुष्का अपि भवन्ति, 'दंडओ जाव वैमाणियाणं ' दण्डको यावत् वैमानिकानाम् अत्र यावत्पदेन नैरयिकादारभ्य ज्योतिषिक पर्यन्तं त्रयोविंशतिदण्डकाः संग्राह्याः । अयं षट्संख्यात्मको निधत्तायुष्करूपो दण्डको वैमानिकदेवपर्यन्तानां बोध्यः इति भावः । अथ पकद्वयमुपसंहरतिएवं एए दुबालसदंडगा भाणियन्त्रा' एवम् - उपरितनवर्णितरीत्या विषट्कस्य एते द्वादशदण्डका आलापका भणितव्याः वक्तव्याः । अथ प्रथम द्वयस्य प्रदर्शितत्वेऽपि अष्टादशशतसंख्यकभङ्गसंख्यायाः स्पप्रतिपत्यर्थ किया है वे अनुभागनामनिधत्तायुक हैं । यहाँ यावत्पंद से गति, स्थिति, अवगाहना, प्रदेश इननाम नीधत्तायुष्कों का ग्रहण हुआ है । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि - 'गोयमा' हे गौतम ! जानामनिहत्ताउया वि, जाव अणुभागनाम निहत्ताउत्ता वि' जीव जातिनाम निघत्तायुष्क भी होते है, यावत् अनुभागनामनीधतायुष्क भी होते हैं। 'दंडओ जाव वैमाणियाणं' यहां यावत् पद से नैरयिकसे लेकर ज्योतिषिक पर्यन्त २३ दण्डक गृहीत हुए हैं । यह ६ संख्यावाला निधत्तायुषक रूप दण्डक वैमानिक देवतक के पदों का जानना चाहिये । इस तरह निधत्तषट्रकरूप प्रथम दण्डक के और निधन्तयुष्कषकरूप द्वितीय दण्ड के १२ आलापक हो जाते हैं यही बात सूत्रकारने एवं ye दुवाल सदंडगा भाणियव्वा इस पाठ द्वारा प्रकट की है । इनमें शेष लवाने अनुभाग नामनिघत्तायुण्ड ह्या छे. अहीं 'यावत' पद्दथी “जति, स्थिति, અવગાહના, અને પ્રદેશ” એ નિધાયુષ્કાના નામ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે. गौतम स्वामीना अश्न उत्तर भापता महावीर प्रभु उडे छे " गोयमा" हे ગૌતમ ! ८८ जानामनिहत्ताउया वि, जाव अणुभागनाम निहत्ताउया वि " भू भतिमान निघत्तायुष्य होय छे, (यावत्) अनुभागनाम निहत्तायुष पशु होय अहीं " यावत् ' 17 પદથી ગતિનાનિધાયુષ્ક આદિ ચાર પદોને ગ્રહણ કરવામા माया छे" दंडओ जाव वैमाणियाणं " मा ६ सय्यावाणु निषत्तायुष ३५ ४४४ નારકાથી લઈને વૈમાનિકા પર્યન્તના ૨૪ પદ્માના વિષયમા પણ કહેવું જોઇએ. આ રીતે નિધત્ત્વનુ ૬ પ્રનેાત્તાવાળુ પહેલુ દંડક અને નિાયુષ્યનુ ૬ પ્રશ્નાત્તાવાળુ ખીજું તે કડક બને છે. તે બન્ને દંડકના કુલ ૧૨ આલાપ થાય છે, એજ વાત સૂત્રકારે दुवाल दंडगा भाणियव्या" या सूत्रपाठ द्वारा अ४८ ४. “ । नाव Bron
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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