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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.६ उ. ८ सु. १ पृथिवीस्वरूपनिरूपणम् वा, सूर्याभा इति वा ? नायमर्थः समर्थः । एवं द्वितीयायां पृथिव्यां भणितव्यम् । एवम् तृतीयायामपि भणितव्यम्, नवरम् - देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, नो नागः प्रकरोति चतुर्थ्यामपि एवम् नवरम् - देवः एकः प्रकरोति, नासुरः, न नागः प्रकरोति । एवम् अस्तनीषु सर्वासु देवः एकः प्रकरोति । अस्ति खलु भदन्त ! सौधर्मेशानयोः कल्पयोः अबो गेहा इति वा, गेहापणा रत्नप्रभा पृथिवीमें चन्द्रप्रभा अथवा सूर्यप्रभा है क्या ? (णो इण ट्ठे समट्टे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( एवं दोचाए पुढवीए भाणियव्व) इसी तरह से द्वितीय पृथिवी में भो कह लेना चाहिये । ( एवं तच्चाए वि भाणियव्वं नवरदेवो वि पकरेड, असुरो वि पकरे, णो णागो पकरेs) इसी तरहसे तृतीय पृथिवी में भी कहलेना चाहिये । विशेष यह है कि तृतीय पृथिवी में देव भी करता है असुर भी करता है । परन्तु नाग नहीं करता है । (उत्थेवि एवं नवरं देवो एक्को पकरेह) चौथी पृथिवी में भी ऐसा ही कहलेना चाहिये विशेषता यहां पर इतनी ही है कि यहां केवल एक देवही करता है (णो असुरो, णो नागो पकरेड़ ) न असुर करता है और न करता है । ( एव डिल्लासु मन्वासु देवो एक्को पकरेइ ) इसी प्रकार से नीचेकी समस्तबाकी की पृथिवियों में एक देव ही है । ( अस्थि णं भते ! सोहम्मीसाणं कप्पाणं अहे गेहाह वा हे महन्त । म २त्नअला पृथ्वीभाशु यन्द्रनीला सूर्य नीला छे जरी ? (णो इणट्ठे समट्टे ) हे गौतम । त्या यन्द्र सूर्यना अाश सावित नथी. ( एवं दोच्चाए पुढate भाणियन्त्रं ) मा प्रभाषेनु उथन जील पृथ्वीना विषयभां यागु समवु. ( एवं तच्चाए वि भाणियन्त्रं - णवर देवो वि पकरेइ, असुरो वि पकरेइ, णो णागो पकरेइ) से प्रभानु उथन श्री पृथ्वी विषे पण समन्न्वु परन्तु त्रील પૃથ્વીમા સસ્વેદન આદિ દેવ પણ કરે છે અને અસુર પણ કરે છે, પરન્તુ નાગ કરતા नथी, [भेटली ४ विशेषता समन्धी (चउत्थे वि एवं - देवो एक्को पकरेइ ) ચેાથી પૃથ્વીમા પણુ એજ પ્રમાણે કથન સમજવું. તેમા સવેદન આદિ કેવળ એક हेव ४ ४२ छे, मेटली विशेषता समन्वी, ( णो असुरो, णो नागो पकरेइ ) असुर ४२ता नथी मने नाग या उश्ता नथी. (एवं देहिल्ला सव्वासु देवो एको पकरेइ ) ४ प्रभा माडीनी समस्त नाथेनी पृथ्वीमा पशु सरवहन माहि ४ हेव ०४ ४२ छे. (अस्थि णं भंते ! सोहम्मीसासाणं कप्पाणं अहे हाइ चा, नाग करता 1
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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