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________________ 4 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६ ४० ४ ० १ जीवस्य सप्रदेश प्रदेश निरूपणम् ९६३ यावत्करणात्-नागकुमाराः सुवर्णकुमाराः, विद्युत्कुमाराः, अग्निकुमाराः, द्वीपकुमाराः उदधिकुमाराः दिक्कुमाराः पवनकुमाराः ' इति संग्राह्यम् । गौतमः पृच्छतिपुढविकाइयाणं भंते ! किं सपएसा, अपएसा ? ' हे भदन्त । पृथिवी कायिकाः खल जीवाः किम् कालापेक्षया सप्रदेशाः भवन्ति ? आहोस्वित् अप्रदेशा भवन्ति ? भगवानाह - ' गोयमा ! सपएसा वि, अपएसा वि ' हे गौतम ! पृथिवीकायिका जीवाः सप्रदेशा अपि भवन्ति, अपदेशा अपि भवन्ति, बहूनां पूर्वोत्पन्नत्वेन द्वयादि समयस्थितिकानां, बहूनां च उत्पद्यमानत्वेन एकसमयस्थितिकानां च तेषां सद्कितनेक सप्रदेश भी हैं और कितनेक अप्रदेश भी हैं। यहां यावत् पद से (नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, दीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वायुकुमार, इन अवशेष भवनपतिभेदों का प्रहण हुआ है। अब गौतम प्रभु से पृथिवीकायिक जीवों के सप्रदेश अप्रदेश के विषय में प्रश्न करते हैं कि - ( पुढविकाइयाणं भते । किं सपएसा, अपएसा ? ) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जो जीव हैं वे क्या सप्रदेश हैं कि अप्रदेश हैं? इसके उत्तरमें प्रभु गौतमसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! पृथिवीकायिक जीव ( सपएसा वि अपएसा वि) सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं। इसका तात्पर्य ऐसा है कि यहां पूर्वोत्पन्न जीव भी अनेक हैं और उत्पद्यमान जीव भी अनेक हैं अतः पूर्वोत्पन्न जीवों की - अपेक्षा पृथिवोकायिक जीव सप्रदेश हैं और उत्पद्यमान पृथिवीकायिक પહેલા ભંગ~ સમસ્ત ભવનપતિ દેવા સપ્રદેશ છે. ” મીો ભંગ આ પ્રમાણે છે-“ અધાં ભવનપતિ દેવા સપ્રદેશ નથી, પશુ અધિકાંશ સ્રપ્રદેશ છે मने प्रदेश छे. " इस लवनपतिना नाभ - ( १ ) असुरकुमार (२) नागकुमार (3) सुपगुकुमार (४) विद्युत्भार (4) अभिभार (६) द्वीपकुमार (७) अधिभार (८) हिड्डुभार (८) वायुकुमार (१०) स्तनितकुमार. હવે ગૌતમ સ્વામી પૃથ્વીકાયિક જીવેાના સપ્રદેશત્વ અને અપ્રદેશત્વના विषयभां भहावीर अलुने सेवो अश्न पूछे छे है ( पुढविक्काइयाणं भंते ! कि सपएसा, अपएसा ? ) डेलहन्त । पृथ्वी डायि । सप्रदेश छे ! प्रदेश छे ? उत्तर—( गोयमा ! ) हे गौतम! पृथ्वी अयि वे ( सपएसा वि अपएसा वि) सप्रदेश पशु होय छे अने महेश या होय छे. अणु ॐ પૃથ્વીકાયામાં પૂર્વોત્પન્ન જીવ પશુ અનેક હાય છે અને નવા ઉત્પન્ન થનારા જીવા પણ અનેક હોય છે. તેથી પૂર્વાંત્પન્ન અવાની અપેક્ષાએ પૃથ્વીકાયિકાને સપ્રદેશ કહ્યા છે, અને પદ્યમાન પૃથ્વીકાયિકાની અપેક્ષાએ તેમને અપ્રદેશ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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