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________________ ६५८ भंगवतासूत्र 'जो जस्स पढमसमए, वट्टइ भावस्स सो उ अपएसो। अण्णम्मि वट्टमाणो, कालाएसेण सपएसो ॥ १ ॥" यो यस्य प्रथमसमये बतते भावस्य स तु अपदेशः। अन्यस्मिन् वर्तमान कालादेशेन सपदेशः" इति ॥ १ ॥ गौतमः पृच्छति-'नेरइएणं भंते ! कालादेसेणं किं सपएसे, अपए से ?' हे भदन्त ! नैरयिकः खलु कालादेशेन कालापेक्षया किम्-सप्रदेशः ? किं चा अप्रदेशः ? भगवानाह-' गोयमा ! सिय सपए से, सिय अपएसे, एव जाव-सिद्धे' हे गौतम ! नरयिकः कालापेक्षया स्यात् कदाचित् सप्रदेशः, स्यात् कदाचित् जो जीव जिस भव के प्रथम समय में वर्तता है, वह जीव अप्रदेश प्रदेशरहित कहलाता है और जो जीव प्रथम समय के अतिरिक्त दूसरे, तीसरे, आदि समयों में वर्तता है वह काल की अपेक्षा सप्रदेश कहलाता है इस तरह से यह सप्रदेश और अप्रदेश का स्वरूप इस गाथा द्वारा प्रकट किया गया है । गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि-(नेरइएणं भते कलादेसेणं किं सपएसे अपएसे) हे भदन्त ! एक नारक जीव काल की अपेक्षा से क्या सप्रदेश है कि अप्रदेश है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा ) हे गौतम ! (सिय सपएसे सिय अपएसे ) हे गौतम ! नारक जीव काल की अपेक्षा से कदाचित् सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है । अर्थात् जिस नारक जीव को उत्पन्न हुए अभी पहिला જે જીવ જે ભવના પ્રથમ સમયમાં રહેલો હોય છે, તે જીવ અપ્રદેશી (પ્રદેશ રહિત) કહેવાય છે, અને જે જીવ પ્રથમ સમય સિવાયના સમયમાં એટલે કે બીજા, ત્રીજા આદિ સમયમાં રહેલું હોય છે, તે જીવ કાળની અપેક્ષાએ સપ્રદેશી (પ્રદેશ સહિત) કહેવાય છે. આ રીતે સપ્રદેશત્વ અને અપ્રદેશત્વનું સ્વરૂપ આ ગાથામાં બતાવવામાં આવ્યું છે. गौतम स्वामी महावीर प्रसुन पूछे छे । (नेरइएणं भंते ! कालादेसेणं कि सपएसे अपएसे ?) BRErd! मे ना२४ ७ शु जना अपेक्षा પ્રદેશયુક્ત છે કે પ્રદેશ રહિત છે? उत्तर-(गोयमा ! ) गौतम । (निय सपएसे सिय अपएसे) मे નારક છવ કયારેક કાળની અપેક્ષાએ સપ્રદેશ હોય છે અને કયારેક અપ્રદેશ હોય છે. એટલે કે જે નારક જીવને ઉત્પન્ન થયાને હજી પહેલે જ સમય
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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