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________________ ६५६ भगवतील सप्रदेशा आहारक-भव्य-संज्ञि-लेश्या-दृष्टि-संयत-पायाः, ज्ञानं योगोपयोगी वेदश्च शरीरपर्याप्तिः ॥ मू० १॥ तृतीयोदेशके जीवः प्ररूपितः, अथ चतुर्थोद्देशकेऽपि तमेव प्रकारान्तरेणाह'जीवे णं भंते' इत्यादि । टीका-'जीवे णं भंते ! कालादेसेणं किं सपएसे, अपएसे ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवः खलु कालादेशेन कालापेक्षया किम् सप्रदेशः-प्रदेशको जानना चाहिये । (सरीर अपजत्तीए, इंदिय अपज्जत्तीए आणपाण अपज्जत्तीए जीव एगिदियवज्जो तियभङ्गो) शरीरपर्याप्ति से रहित, इन्द्रियपर्याप्ति से रहित, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति से रहित जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं । ( नेरइय-देव-मणुएहिं छन्भंगा) नरयिक, देव और मनुष्यों में छहभंग होते हैं । संग्रह गाथा सपएसा आहारग भविय-सन्नि-लेसा-दिहि-संजय-कसाया। णाणे जोगु-वओगे वेदेय सरीर-पज्जत्ती॥१॥ सप्रदेश, आहारक, भव्य, संज्ञी, लेश्या, दृष्टि, संयत, कपाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति ॥ टीकार्थ-पीछे के उद्देशक में जीव का निरूपण किया गया है-इस चतुर्थ उद्देशक में भी उसी जीव का सूत्रकार प्रकारान्तर से निरूपण आयु सभा. (सरीर अपज्जत्तीए, ईदिय अपज्जत्तीए आणपाण अपज्जत्तीए जीव एगिदियवज्जो तियभंगो) शरीर पतिथी २डित, छन्द्रिय यतिथी રહિત, અને શ્વાસોચ્છવાસ પર્યામિથી રહિત જીમાં જીવ અને એકેન્દ્રિય सिवायन ayu थाय छे. ( नेरइय, देव, मणुएहि छन्भंगा) नारी, हेवे। એને મનુષ્યમાં છ ભંગ થાય છે. સંગ્રહગાથા “सपएसा आहारग-भविय-सन्नि-लेसा-दिट्टि संजय-कसाया " णाणे जोगु-घओगे वेदेय सरीर-पज्जत्ती ॥ १ ॥ सप्रदेश, मा.२४, सव्य, सशी, वेश्या, दृष्टि, संयत, पाय, ज्ञान, यान, ७५या, वेद, शरी२ मने पालि. ટીકાઈ— આગલા ઉદ્દેશકમાં જીવનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. આ ઉદેશમાં પણું સૂત્રકાર બીજી રીતે જીવનું નિરૂપણ કરી રહ્યા છે તેમાં ગૌતમ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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