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________________ अथ चतुर्थोद्देशः प्रारभ्यते पष्ठशत के चतुर्थी देशकरय संक्षिप्तविषयविवरणम् - एकत्वेन जीवः कालापेक्षया समदेशः किं वा अप्रदेशः इति प्रश्नः, नियमतः सप्रदेश एवं नो अप्रदेश इत्युत्तरम् । तथा नैरयिकः कालापेक्षया समदेश: अदेशो वा ? इति प्रश्नः कदाचित् समदेशः कदाचित् अमदेश, इत्युत्तरम् । ततो बहुत्वेन जीवाः कालापेक्षया समदेशाः अप्रदेशा वा ? नियमतः समदेशा एक, नो छडे शतक के चौथा उद्देशकका प्रारम्भ इस शतक के इस चतुर्थ उद्देशक का विषय विवरण संक्षेप से इस प्रकार है- एक जीव काल की अपेक्षा से क्या प्रदेशों से सहित है कि प्रदेशों से रहित है ? ऐसा प्रश्न - इसका " नियम से जीव प्रदेशों से सहित ही है प्रदेशों से रहित नहीं है " ऐसा उत्तर एक नारक जीव काल की अपेक्षा से क्या प्रदेशसहित हैं कि प्रदेशरहित है ? ऐसा प्रश्न इसका " कदाचित् वह प्रदेशसहित है और कदाचित् वह प्रदेशरहित है " ऐसा २ उत्तर, अनेक जीव काल की अपेक्षा से सप्रदेश हैं कि प्रदेशों से रहित हैं ? ऐसा प्रश्न, इसका " नियम से वे सब प्रदेशसहित ही हैं " ऐसा उत्तर, अनेक नारक जीव - सब नारक जीव- काल की अपेक्षा से प्रदेशसहित हैं कि प्रदेशों से रहित हैं ऐसा प्रश्न- इसका છઠ્ઠા શતકના ચાથા ઉદ્દેશક છઠ્ઠા શતકના ચાથા ઉદ્દેશકના વિષયનું સ’ક્ષિપ્ત વિવરણ પ્રશ્ન—એક જીવ કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશેા સહિત છે કે પ્રદેશેાથી રહિત છે ? ઉત્તર—નિયમથી જ જીવ પ્રદેશેાથી યુક્ત છે, પ્રદેશેાથી રહિત નથી. પ્રશ્ન—એક નારક જીવ શું કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશ સહિત છે કે પ્રદેશાથી રહિત છે ? ઉગ્રર—કયારેક તે પ્રદેશેાથી યુક્ત છે અને ક્યારેક પ્રદેશેાથી રહિત છે. प्रश्न-अनेषु ( साजा ) व अजनी अपेक्षा अशोधी युक्त है પ્રદેશાથી રહિત છે ? ઉત્તર—નિયમથી જ તેએ બધાં પ્રદેશાથી યુક્ત છે. પ્રશ્ન—અનેક ( સઘળા) નાક જીવ કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશયુક્ત છે કે પ્રદેશ રહિત છે ?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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