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________________ मेयचन्द्रिका टी० सू० ४ ० ६ ० ३ कमरितिरूिपणम् भगवानाह-'गोयमा । हेहिला तिणि प्रयणाए ' हे गौतम ! अधस्तनाः आधास्त्रयश्चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी च, इत्येते ज्ञानावरणं कर्म भजनया कदाचिद् बध्नन्ति, कदाचिन्नो बध्नन्ति, चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनिनो यदि सरागा भवन्ति तदा ज्ञानावरणं वध्नन्ति यदा तु छद्मस्थवीतरागा एकादशगुणस्थान वतिनो जीवास्तदा ज्ञानावरण कर्म न बध्नन्ति, छद्मस्थवीतरागाणां वेदनीयस्यैव बन्धकत्वात् , अत एव 'भजनया' इत्युक्तम् , 'उवरिल्ले न बंधइ’ उपरितनः अन्तिमः केवलदर्शनी भवस्थः सयोगिकेवली अयोगिकेवली इत्यर्थः सिद्धो वा हेत्वभावात् न वध्नाति । 'एवं वेयणिज्जवजाओ सत्त वि ' एवं ज्ञानावरणवदेव वेदनीयव ः (केवलदसणी बंधइ) केवलदर्शनवाला जीव बांधता है ? कौन से दर्शनवाला जीव बांधता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं('गोयमा) हे गौतम ! (हेछिल्ला तिण्णि भयणाए) जो जीव चक्षुदर्शन घाला, अचक्षुदर्शनंवाला और अवधिदर्शनवाला है, वह जीव ज्ञानांवरंणकर्म का वंध भजना से करता है-अर्थात् कभी बांधता भी है, और कभी नहीं भी यांधता है। यदि इन दर्शनों वाला जीव सराग है नो वह ज्ञानावरण कर्म का बंध नियम से करता है और यदि वह छमस्थ "वीतराग-ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवाला है तो वह ज्ञानावरण 'कर्म का वंध नहीं करता है क्यों कि जो छद्मस्थ वीतराग होता है उसके वेदनीय कर्म का ही बंध होता है इसीलिये यहां (भजनया) ऐसा पद कहा है (उवरिल्ले न बंधइ) तथा जो केवलदर्शनी जीव है अर्थात् भवस्थ सयोग केवली और अयोगकेवली हैं-वे या जो सिद्ध जीव है वह वधहेतु के अभाव हो जाने के कारण ज्ञानावरणीयकर्म तर-“गोयमा !” गीतम'! " हेडल्ला तिण्णि भयणाए' यक्षु દર્શનવાળો જીવ. અચક્ષ દશનવાળો જીવ અને અવધિ દર્શનવાળો જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ વિકલ્પ બાંધે છે–એટલે કે ખાંધે છે પણ ખરાં અને નથી પણું બાંધતા. જે આ દશાવાળા સરાગ હોય તે તેઓ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ અવશ્ય બાંધે છે, પણ જે તે છવાસ્થ વીતરાગ અગિયારમાં અને બારમાં ગુણસ્થાનવાળો હોય તે તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધતું નથી, કારણ કે ઍવસ્થ વીતરાગને તે વેદનીય કર્મ જ બંધાય છે તે કારણે એવું કહ્યું છે કે “પહેલા ત્રણ દર્શનવાળે જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ વિકલ્પ બાધે છે.” " उवरिले न बधइ" प ण शn 4-मटले हैं म१२५ सयोग કેવલી અને અયોગ કેવલી અથવા તે સિદ્ધ જીવ-જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બંધ કરતું નથી, કારણ કે એવા જીવને બંધનાં કારણોને જ સર્વથા અભાવ હોય
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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