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________________ २०२ ___भगवतीसरे भिन्नः सम्यग्दृष्टिर्ज्ञानावरणं कर्म बध्नाति, वीतरागश्च सम्यगृदृष्टिः शातावेदनीयरूपैविधकर्षवन्धमत्वात् ज्ञानावरणं कर्म न बध्नाति इत्यभिप्रायेणाहस्यात् कदाचित् अवीतरागावस्थायां ज्ञानावरणं कम वनाति, स्यात् कदाचित्वीतरागावस्थायां ज्ञानावरणं कर्म न बध्नाति, 'मिच्छट्ठिी बंधइ, सम्मामिच्छ. दिही बंधइ ' मिथ्यादृष्टिबध्नाति, सम्यग्रमिथ्याष्टिः मिश्रष्टिरपीत्यर्थः वध्नाति 'एवं आउगवज्जाओ सत्त वि' एवम् अनेन प्रकारेण आयुष्कर्जाः सप्तापि कर्मप्रकृतयो विज्ञेयाः दर्शनावरणादिकर्माण्यपि आयुष्यवर्जितानि सम्यग्दृष्टिः सम्यग्दृष्टि दो प्रकार का होता है एक वीतराग सम्यग्दृष्टि और दूसरा धीतरागभिन्न सम्ग्दष्टि; इनमें जो वीतरागभिन्न सम्यगदृष्टि जीव है यह तो ज्ञानाचरणीय कर्म का बंध करता है और जो वीतराग सम्यगूदृष्टि जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है । वह तो केवल एक विध-शानावेदनीयरूप-कर्मका ही बंध करता है-इसी कारण ऐसा कहा है कि जो सम्यग्दृष्टि जीव अवीतराग है-अर्थात् सरागस. भ्यगृहष्टि है-वह ज्ञानावरण कर्म का बंध करता है और जो सम्यगृष्टि धीतराग है-वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है। मिच्छादिट्ठी घंधइ, सम्मामिच्छादिट्टी बंधइ) परन्तु जो मिथ्यादृष्टि जीव है वह और जो मिश्र दृष्टि जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है। (एवं आउगवजाओ सत्त वि) इस द्वार में ज्ञानावरणीय कर्म का बंध की तरह से ही आयु को छोड़कर शेष-दर्शनावरणीय आदि की के बांधने નથી પણ બાંધતે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-સમ્યગ્દષ્ટિ બે પ્રકારના હોય છે વીતરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ અને વીતરાગ ભિન્ન સમ્યગ્દષ્ટિ. આ બને પ્રકારના સમ્યગ્દષ્ટિ માને વીતરાગ ભિન્ન સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ વીતરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરતું નથી. તે તે માત્ર શાતાદનીય કર્મને જ બંધ કરે છે. તે કારણે એવું કહ્યું છે કે જે સમ્યગ્દષ્ટિ જીવ અવતરાગ છે–એટલે કે સરાગ સમ્યગ્દષ્ટિ છે, તે તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ જે સમ્યગ્દષ્ટિ વીતરાગ ७ राय छे ते ज्ञानापरणीय भना मध ४२तो नथी. (मिच्छादिछी बंधइ, सम्मामिच्छादिट्ठी बंधइ) ५२ मिथ्याट तथा भिष्टि ज्ञाना. १२jीय मना मध ४२ छ. ( एवं आउगवजाओ सत्त वि) मा वाम • યુકર્મ સિવાયના સાતે કમને બંધ બાંધવા વિષેનું સમસ્ત કથન જ્ઞાના
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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