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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ६ उ० ३ सू० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम् गौतम ! सूक्ष्मो बध्नाति, वादरो भजनया, नोमूक्ष्म-नोवादरो न बध्नाति, एवम् आयुष्कवर्नाः सप्ताऽपि, आयुष्कं मूक्ष्मो, वादरो भजनया, नोमुक्ष्म-नो वादरो न बध्नाति ? ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं चरमो वध्नाति, अचरमो ‘वध्नाति ? गौतम ! अष्टाऽपि भजनया ॥ सु०५॥ - टीका-णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ ? ' गौतमः पृच्छतिहे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं खलु कर्म किम् स्त्री बध्नाति ? 'पुरिसो बंधइ ? ' का बंध सूक्ष्मजीव करता है वादर जीव तो मजना से इसका बंध करता है, जो नो सूक्ष्म और नो चादर हैं वे इसका बंध नहीं करते हैं। (एवं सत्त वि, आउए सुहमे, बायरे भयणाए, यो सुहुमणा बायरे न वंधह) इसी प्रकार से ये जीव आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों का बंध करते हैं ऐसा जानना चाहिये। ये दोनों सूक्ष्म बादर जीव आयु कर्म का बंध भजना से करते हैं। तथा जो नो सूक्ष्मजीव हैं और नो चादर जीव हैं वे आयुकर्म का वध नहीं करते हैं। (णाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंधद, अचरिमे बंधह) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध जो चरम जीव होता है वह करता है कि जो अचरम जीव होता है वह करना है ? (गोयमा ! अढवि भयणाए) हे गौतम। ऐसे जीव आठों कर्मप्रकृतियों का बंध भजना से करता है। टीकार्थ-ज्ञानावरणीय आदि कर्म के प्रस्ताव से सूत्रकार इस सूत्र द्वारा उन ज्ञानावरणीय आदि कमों के बांधनेवालों का निरूपण करने के लिये सर्वप्रथम स्त्री आदि द्वारा का कथन कर रहे हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया कि (णाणावरणिजं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी ४२ता नथी ( एवं आउगवज्जाओ सत्त वि, आउए सुहुमे, वायरे भयणाए, णो सुहुम णो बायरे न बधइ) मे प्रमाणे ते वे मायु सिवायना सात કને બંધ કરે છે તેમ સમજવું સૂક્ષ્મ અને બાદર જી આયુકમનો બંધ કરે છે પરંતુ નાસૂમ અને માદર છ આયુકમને બંધ કરતા નથી. (णाणावरणिज्ज' णं भंते ! कम्मं किं चरिमे वधइ, अचरिमे बधइ?) હે ભદન્ત! શું ચરમ શરીરી જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બધ કરે છે? કે सयरम शरीरी १ ४३ छ १ (गोयमा ! अट्ट वि अयणाए) गौतम ! એ જીવ આઠે કમ પ્રકૃતિને બંધ વિકલ્પ કરે છે. ટીકાર્યું–આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે જ્ઞાનાવરણીય આઠ કર્મોના બંધનું મિર કર્યું છે. સૌથી પહેલાં સૂત્રકાર સ્ત્રી આદિ દ્વારનું કથન પ્રશ્નોત્તરે દ્વારા કરે છે. गौतम साभी महावीर प्रभुने मा.प्रश्न पूछे छे । “णाणावरणिज्ज
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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