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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ उ० ३ ० ४ कर्मस्थतिनिरूपणम् ८८२ संयतासंयतो बध्नाति ? गौतम ! संयतः स्याद् बध्नाति, स्याद् न बध्नाति ' असंयतो वध्नाति संयताऽसंयतोऽपि बध्नाति, नोसंयतनोअसंयत-नोसंयता संयतो न वध्नाति एवम् आयुष्कवर्णाः सप्तापि, आयुष्कम् अधस्तनास्त्रयो णी असंजय - णो संजया संजए बंधइ ? ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या संयत जीव बांधता है ? असंयत जीव बांधता है ? या संयतासंयत जीव बांधता है ? अथवा जो नो संयत होता है वह बांधता है ? या जो नो असंयत या नो संयतासंयत जीव होता है वह बांधता है । (गोयमा) हे गौतम! (संजए सिय बंधइ, सिय णो बंधइ, असंजए बंधइ, संजया संजए वि बंध, णो संजय, णो असंजय णो संजया संजए ण बंधइ ) ज्ञानावरणीय कर्म संयत बांधना भी है और नहीं भी बांधता है । पर जो असंयत होता है वह बांधता है तथा जो संयतासंयत होता है वह' भी बांधता है । तथा जो नो संगत होता है, नो असंयत होता है, नो संयतासंयत होता है, वह नहीं बाँधता है । ( एवं आउगवजाओ सत्त त्रि, आउगे हेडिल्ला तिष्णि भयणाए, उवरिल्ले पण बंधइ) इसी तरह से आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में भी जानना चाहिये | आयुकर्स के विषय में ऐसा जानना चाहिये कि जो जीव संपत हो, असंयत हो, या संयतासंयत हो वह आयुकर्म को बांधता भी है नए वधइ, संजय संजय बंधइ, णा संजय, णा असंजय, णो संजयास प बधइ १) हे लहन्त ! शु संयंत त्र ज्ञानावरणीय उर्भ जांघे छे ? शु અસયત જીવ તે કમ ખાંધે છે? શું સ યતાસયત છત્ર તે કમ ખાંધે છે ? અથવા શુ' ના સયત જીવ તે કમ ખાંધે છે? ના અસયત જીવ તે કમ ખાંધે છે? શું ના સથતાસયત જીવ તે કમ અંધે છે ? ( गोयमा ! ) हे गौतम । ( संजए सिय बंधइ सिय णो बइ, असंज वध, संजय संजए वि बंधइ, णो संजय, णो असंजय णो संजया संजय ण बंधइ ) જ્ઞાનાવરણીય ક્રમ સચત જીવ ખાંધે પણુ છે અને નથી પણ ખાંધતા, પશુ અસયત જીવ તથા સયતાસયત જીવ માંધે છે, ના સયત, ને અસયત અને ના સયતાસયત જીવા જ્ઞાનાવરણીય કમ ખાંધતા નથી. (एक आउगवज्जाओ सत्त वि, आउगे हेटिल्ला तिष्णि भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ ) आयुर्भ सिवायनी साते उभं प्रतियोना विषयभां यशु या प्रभा છું જ સમજવું. આયુક્રમના વિષયમાં એવું સમજવું કે જે જીવ સરૈયત હોય, અસયત હાય, અથવા તેા સયતાસયત હોય તે આયુકમ બાંધે છે પણ ખરા અને નથી પણ ખાંધતા. પર ંતુ જે જીવ ના સયત હાય, ને અસયત भ ११२
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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