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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ६ उ०३ सू२ जीवकर्मनिरूपणम् ८३३ - - छाया-वस्त्रस्य खलु भदन्त ! पुद्गलोपचयः किं प्रयोगेण, विखसया ? गौतम । प्रयोगेणापि, विसयापि । यथा खलु भदन्त वस्त्रस्य खलु पुदलोपचयःप्रयोगेणापि, वित्रसयापि, तथा खलु जीवानां कर्मोपचयः किं प्रयोगेण विखसया ? । गौतम ! प्रयोगेण, न विससया। तत् केनार्थेन ? । गौतम ! जीवानां त्रिविधः प्रयोगः प्रज्ञप्तः, जीवकर्म वक्तव्यता (बस्थरसणं भंते !) इत्यादि। सूत्रार्थ-(बत्थरस णं अंते ! पोग्गलोववचये किं पयोगसावीससा) हे भदन्त ! वस्त्र के पुद्गलों का जो उपचय होता है वह क्या प्रयोग से होता है ? या स्वाभाविकरूप से होता है ? (गोमा) हे गौतम! (पोगसा वि वीससा वि) प्रयोग खे-पुरुषप्रयत्न से भी होता है और स्वा. भाविकरूप ले भी होता है। (जहाँ णं भंते ! वस्थस्ल णं पोग्गलोवचये पयोगसा वि वीलसा वि, तहा णं जीवा णं कम्मोवगए किं पयोगला । वीसला) हे भदन्त ! जिस प्रकार से वस्त्र के पुद्गलों का उपचय प्रयोग से भी और स्वाभाविकरूप से भी होता है, उसी तरह से क्या जीवों के कर्म का उपचय भी प्रयोग से और स्वाभाविकरूप से होता है ? (गोयमा! पओगसा नो वीससा) हे गौतम ! जीवों के जो कर्म का उपचय होता है वह प्रयोग से ही होता है-स्वाभाविकरूप से नहीं होता। (से केणद्वेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जीव के जो कर्मका उपचय होता है वह प्रयोगसे ही होता है-स्वाभाविकरूप જીવકર્મવક્તવ્યતા– (वत्थस्स ण भंते 1) इत्यादि। सूत्रार्थ-(वत्थस्स णं भंते ! पोग्गलोवचये किं पयोगमा बीससा) है ભદન્ત ! વસ્ત્રનાં પુલેને જે ઉપચય થાય છે તે શું પ્રયોગથી થાય છે, કે स्पानि: ३२ थाय छ १ (गोयमा ! ) गौतम । (पयोगसा वि वीससा वि) પ્રગથી–પુરુષ પ્રયનથી પણ થાય છે અને સ્વાભાવિક રૂપે પણ થાય છે. (जहा णं भंते ! वत्थस्स णं पोग्गलोवचये पयोगसा वि वीससा वि, वहाणं जीवाणं कम्मोवगए कि पयोगसा वीससा) ard! भनां सोना उपयय प्रयोगथी ५ थाय छ भने स्वाभावि४ ३२ थाय छ १ (गोयमा ! पभोगसा नो वीससा) गौतम | Cari मन यय प्रयोगथी । थाय छे, स्वामावि ३३ था नथी. . (से केणट्रेणं० ) महन्त ! मा५ ।। २) मे ४ छ। वाने કમને જે ઉપચય થાય છે તે પ્રયોગથી જ થાય છે, સ્વાભાવિક રૂપે થતું भ १०५ --- - --- -- - - - -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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