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________________ भगवती सूत्रे ८२२ भिध्या लोभः सा संजाताऽस्मिन् इति भिध्यितस्तस्य भावस्तदुराहित्येन सर्वथाऽवाञ्छनीयत्वेन अलोभनीयतया, अधस्तया जघन्यत्वेन, नो ऊर्ध्वतया नोत्कृ त्वेन ' दुक्खत्ताए, जो सुहत्ताए ' दुःखतया दुखत्वेन, नो सुखतया नो सुखत्वेन ' भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?' भूयो भूयः वारं वारं परिणमति ? एवं महाकर्मादिजीवस्यात्मा दुरुपर्वणादियुक्तो भवति किमिति भावः । भगवान् आह - 'हंता, गोयमा ! महाकम्मस्स तं चेत्र ' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् महाकर्मणः तदेव पूर्वोक्तवदेव महाक्रियस्स महास्रवस्य महावेदनस्य जीवस्य सर्वतः पुद्गला वध्यन्ते इत्यादि सबै संग्राह्यम् । गौतम आह—' से केणट्टेणं ? ' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवं पूर्वोक्तम्च्यते यत्-महाकर्मणः महाक्रियस्य महास्रवस्य महावेदनस्य च जीवस्य पुद्गला वध्यन्ते इत्यादि । भगवान् सदृष्टान्तमाह - ' गोयमा ! से जहा नामए वत्थस्स महाकर्मादि युक्त जीव का शरीर दुरूप दुर्वर्णादि से युक्त होता है क्या ? उ. (हंता, गोयमा ! महाकम्मस्स तं चेव ) हां, गौतम ! महाकर्मवाले जीव के वही पूर्वोक्तरूप से सब कुछ होता है । अर्थात् जो जीव महाक वाला होता है, महाक्रियावाला होता है, महास्रववाला होता है, महावेदनावाला होता है, उस जीव के सर्वतः पुद्गलों का बंध होता है इत्यादि सब कथन यहां पर लगा लेना चाहिये। (से केणठ्ठेणं) हे भदन्त | ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जो जीव महाकर्मा होता है, महाक्रियावाला होता है, महास्रववाला होता है, और महावे दनावाला होता है ऐसे जीव के पुद्गल बंधते हैं इत्यादि । भगवान् इस प्रश्न का उत्तर दृष्टान्त देकर देते हैं - वे बतलाते हैं कि ( गोयमा ) है આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એટલું જ છે કે મહાકમ આદિથી યુક્ત જીવનું શરીર શુ કુત્ર, કુરૂપ આદિથી યુક્ત હોય છે ? महावीर अलुतेनो भवाम भायता डे छे - ( हांता गोयमा ! महाकम्मस्स त चेव ) डा, गौतम ! भाम्भवाजा लवनी शेवी दृशा हाथ छे. એટલે કે જીવ મહાકવાળા, મહાક્રિયાવાળા, મહાસત્રવાળા અને મહાવેદનાવાળા હાય છે, એ જીવ સમસ્ત દિશાઓમાંથી-આત્મપ્રદેશેામાંથી हर्मनो अध अरे छे, इत्याहि स्थन महीं ग्रह ४२. ( से केजण ) હે ભદ્દન્ત! આપ શા કારણે એવું કહેા છે કે જે છત્ર મહાકમ વાળા હાય છે, મહાક્રિયાવાળા હાય છે, મહાઆસવવાળા હાય છે અને મહાવેઢનાવાળા હાય છે, એવા જીવ કમ"ધ કરતા રહે છે?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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