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________________ ८०८ ___ भगवतीसरे बन्धकत्वं कदाचिदवन्धकत्वं च । स्त्र्यादीनां कदाचिद् आयुष्यकर्मवन्धकत्वं,कदा. चिन्न । ततः संयतासंयतादीनां कर्मवन्धकत्वे प्रश्नोत्तरम् । तथा सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टि-सम्यगमिथ्यादृष्टि-संश्यसज्ञि-नोसज्ञि नोअसंज्ञि,-भवसिद्धिका-भवसिद्धिकनोतदुभयसिद्धिक-चक्षुर्दर्शन्यचक्षुर्दर्शनि-केवलदर्शनि-पर्याप्ता-पर्याप्त-नोतदुभयभाषका-भापक-परिता-परित्त - नोतदुभय-मतिज्ञानि-श्रुतज्ञान्यवधिज्ञानि-मनः पर्यवज्ञानि-केवलज्ञानि - मतिश्रुतावध्यज्ञानि - मनोवचः काययोग्ययोग्याकारोपयोगि-निराकारोपयोग्याहारका-नाहारक-सूक्ष्म- वादर नोतदुमय - चरमाचरमाणाम् कर्मवन्धविचारः, स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदका-वेदक जीवाल्पबहुत्वकथनम् । अवन्धकत्व का कथन संयतासंयतादिकों के कर्मयन्ध होने में प्रश्नोत्तर इसके बाद-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, संज्ञी, असंज्ञी, नो संज्ञी, नो असंज्ञी, भवसिद्धक, अभवसिद्धिक, नो भवसिद्धिक, नो अभवसिद्धिक, चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, केवलदर्शनी, पर्याप्त, अपर्याप्त, नो पर्याप्त, नो अपर्याप्त, भाषक, अभाषक, परित्त, अपरित्त, नो परित्त, नो अपरित्त, मतिज्ञानी, श्रुनज्ञानी, मनः पर्ययज्ञानी केवलज्ञानी, मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानी, विभङ्ग अज्ञानी मनोयोगी, वचोयोगी, काययोगी, अयोगी, साकारोपयोगी निराकारोपयोगी, आहारक, अनाहारक, सूक्ष्म, बादर, नो सूक्ष्म, नो बादर, चरम और अचरम इन सब के कर्मबन्ध का विचार तथा अन्त में स्त्री, पुरुष, एवं नपुंसक इन वेदवालों के और अवेदवालों के अल्प बहुत्व का कथन । સંતાસંયત આદિકમાં કર્મબન્ધ થવા વિશેના પ્રશ્નોત્તરે. ત્યારબાદ સમ્યગ६ष्ट, भिश्याट, सभ्यभिभ्याट, सशी, मशी, न असशी, ससिदि, અભવસિદ્ધિ, ને ભવસિદ્ધિક ને અભાવસિદ્ધિક, ચક્ષુદર્શની, અચક્ષુદર્શની, मधिश ना, नी, पर्यात, अपर्यास, नो पति, P. अपर्यात, भाष, माष४, परित्त, अपरित, परित्त, नमपरित, भतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, મનપજ્ઞાની, કેવલજ્ઞાની, મતિજ્ઞાની, મુતઅજ્ઞાની, અવધિઅજ્ઞાની, મનેयोगी, ४१ययी, अया, सारे।पयो, नि४॥।५यी, मा२४, मनाહારક, સૂમ, બાદર, ને સૂમ, ને બાદર, ચરમ અને અચરમ, એ બધાના કર્મબન્ધનો વિચાર. અન્ત , પુરુષ અને નપુંસક અને અડવાળાના म-अप ४यन.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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