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________________ ७२८ .. . ... भगवतीस्त्रे नैरयिकाः महावेदना:-अल्पनिर्जराः । शैलेशी मविपन्नकः अनगारः अल्पवेदनोमहानिर्जरः । अनुत्तरौपपातिका देवा अल्पवेदनाः अल्पनिर्जराः । तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति ॥ “महावेदनश्च, वस्त्रं, कर्दम-खञ्जनकृतं चाधिकरणी । तृण हस्तकश्च कवल्लं, करण-महावेदना जीवाः " ॥ सू० ३ ॥ टीका-'जीवा णं भंते ! किं महावेयणा - महानिज्जरा ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवाः खलु किम् महावेदनाः महानिर्जराश्च भवन्ति, महायणा अप्पनिजरा सेलेसि पडिवनए अणगारे अप्पवेयणे महानिजरे अणुत्तरोषवाइया देवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) जो अनगार प्रतिमाप्रतिपन्न होता है, वह महावेदनावाला और महानिर्जराबाला होता है, छट्ठी और लालवी पृथिवी में जो नारक जीव होते हैं वे महावेदनावाले और अल्पनिर्जरावाले होते हैं। शैलेशी अवस्था प्राप्त जो अनगार होता है, वह अल्पवेदनावाला और महानिजरावाला होता है! तथा अनुत्तरोपपातिक जो देव होते हैं, वे अल्पवेदना और अल्पनिर्जरावाले होते हैं। हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह ऐसा ही है-हे भदन्त ! वह ऐसा ही है। ऐसा कहकर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये। टीकार्थ-वेदना और निर्जरा का अधिकार चल रहा है इससे यहां पर सूत्रकार ने इन दोनों का साहचर्य प्रतिपादन किया है-गौतम ने प्रभु से इस विषय में ऐसा पूछा है कि-(जीवाणं भंते ! किं महाव्यणा पुढवीसु नेरइया महावेयणा अप्पनिजरा, सेटेसि पडिन्नए अणगारे अप्पवेयणे महानिजरे, अणुत्तरोक्वाइया देवा अपवेयणा अप्पनिज्जरा ) प्रतिमा पा२९) ४२ નારે અણગાર મહાદનાવાળો અને મહાનિ જરાવાળો હોય છે, છઠ્ઠી અને સાતમી નરકના નારકે મહાવેદનાવાળા અને અલ્પનિર્જરાવાળા હોય છે. શૈલેશી અવસ્થા પ્રાપ્ત કરનાર અણગાર અલ્પવેદનાવાળે અને મહાનિર્જરાવાળે હોય છે, અને અનુત્તર વિમાનવાસી દેવો અલ્પવેદનાવાળા અને અલ્પનિર્જરાपाय छ (सेव भते । सेव भते त्ति) महन्त ! माथे प्रभारी र છે. આપની વાત સત્ય અને યથાર્થ છે. આ પ્રમાણે કહીને વંદણું નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા. ટીકાર્યું–વેદના અને નિર્જરાને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે તેથી સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં તે બન્નેના સાહચર્યનું પ્રતિપાદન કર્યું છે. આ વિષયમાં ગૌતમ स्वामी महावीर प्रभुने मेवो प्रश्न पूछे छे । (जीवाणं भते ! कि महावेयणा
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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