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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ६ ७० १ सू० ३ करंगेस्वरूपनिरूपणम् ७८७ गौतम ! अमुरकुमाराणां चतुर्विधं करणं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-मनरकरणम् , वचस्करणम् , कायकरणम् , कर्मकरणम् , इत्येतेन शुभेन करणेन असुरकुमाराः करणतः सातां वेदनां वेदयन्ति, नो अकरणतः । एवं यावत्-स्तनितकुमाराणाम् । पृथिवीकायिकानाम्-एवमेव पृच्छा ? नवरम्-इत्येतेन शुभाशुभेन करणेन पृथिवीका (गोयमा) हे गौतम ! ( करणओ णो अकरणओ) असुरकुमार करण से शातावेदनाका वेदन करते हैं-अकरण से वे शातावेदना का वेदन नहीं करते हैं। (से केणडेण ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा! असुरकुमाराणचउन्धिहे करणे पण्णात्ते) हे गौतम असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं (मणकरणे, क्यकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे) मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण (इच्चेएणं सुभेणं करणेण असुरकुमाराण करणओ सायं वेयणं वेयंति) इन शुभ करणों से असुरकु मार शातावेदनाका वेदन करते हैं इस कारण वे करणसे शातावेदन-का वेदन करते हैं (जो अकरणओ) अकरण से शातांवेदना का वे वेदन नहीं करते हैं (एवं जाव थणियकुमाराण) इसी तरह से यावत् स्तनितकुमारों के भी जानना चाहिये। (पुढचीकाइयाण एवामेव पुच्छा) हे भदन्त | पृथिवीकायिक जीव करण से शाता और असातारूप वेदना का अनुभव करते हैं ? या अकरण से शाता और अशाता वेदना का छ १ (गोयमा ! करणओ, णो करणओ) गौतम ! ४२४थी शातावहनातुं वन ४२ छ, तमा २५४२थी शतावनातुं वहन ४२ता नथी. ( सेकेणटे णं) 3 महन्त ! मा५ ॥ १२ मे ४३। छ। १ ( गोयमा ! असुरकुमाराण' चउविहे करणे पण्णत्ते), गौतम ! मसुरशुभाशना न्या२ प्रा२न ४२६ घi छे, (तंजहो) , (मणकरणे, वयकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे ) भन ४२६, क्यन४२९, ४२४२६ मन. ४४२६. (इच्चेएणं सुभेणं करणेणं असुरकुमाराण करणओ साय वेयण वेयति) ते शुभ ४२ थी असुमारे। शाता. વેદનાનું વેદન કરે છે. તે કારણે તેઓ કરણથી શાતવેદનાનું વેદન કરે છે. (णो अकरणओ) म४२थी शतावनानु वहन ४२ता नथी. ( एवं जाव थणियकुमाराण') स्तनितभार पर्य-तना हेवाना विषयमा ५५ सेम समj. (पुढवीकाइयाण एवामेव पुच्छा) महन्त ! पृथ्वीय छ। ४२४थी शता વેદના અને અશાતવેદનાનું દાન કરે છે, કે અકરણથી શાતા વેદના અને અશાતવેદનાનું વેદન કરે છે ?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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