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________________ भगवती सूत्रे भवन्ति, सर्वथा कर्मरहिताः न भवन्तीत्यर्थः । एतेन महानिर्जराया अभावस्य निर्वाणाभावस्वरूपफलं प्रतिपादितम् । एवञ्च 'यो महावेदनः स महानिर्जरः ' इति प्रागुक्तो नियम ः विशिष्टात्मापेक्षो वेदितव्यः, नतु नैरयिकादिविलप्टकर्मजीवापेक्ष इति, एवं 'यो महानिर्जरः स महावेदनः ' इति नियमोऽपि मायिको बोध्यः, अयो गिकेवलिनो महानिर्जरत्वेऽपि महावेदनत्वस्य अनेकान्तिकत्वात् अयोगिकेवली महानिर्जरो भत्रत्येव,महावेदनस्तु कदाचित् स्यात्, कदाचित् नापिस्यादिति भावः । शिष्ट कर्मक्षयरूप निर्जरावाले नहीं होते हैं और न सर्वथा कर्म से ही रहित होते हैं । इससे सूत्रकार ने यह प्रकट किया है कि जब उनमें महानिर्जरा का ही अभाव रहता है तब इस महानिर्जरा के अभाव का फल तो निर्वाणभाव (मोक्ष का अभाव ) है वह उनमें है ही यह स्पष्ट है अतः इस कथन से सूत्रकार ने यह प्रमाणित किया है कि ( यो महावेदन स महानिर्जरः ) यह जो पहिले कहा गया है " जो महावेदनावाला होता है वह महानिर्जरावाला होता है " सो यह कथन विशिष्ट आत्मा की अपेक्षा से कहा गया ही जानना चाहिये । क्लिष्ट कर्मवाले नारक जीवों की अपेक्षा से नहीं । इसी तरह से " जो महानिर्जरावाला होता है वह महावेदनावाला होता है " यह कथन भी-नियम भी प्रायिक जानना चाहिये क्यों कि अयोगि केवली जो होते हैं वे महानिर्जरावाले होकर भी महावेदनावाले नहीं भी होते हैं। तात्पर्य कहने का यह है कि ऐसा नियम नहीं बन सकता है कि जहाँ २ पर महानिर्जरावत्व हो ناوی ભાગવવા છતાં પણ વિશિષ્ટ કમ ક્ષયરૂપ નિર્જરાવાળા હાતા નથી, અને તેઆ પ્રુથી સથા રહિત હાતા નથી. આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે એ વાત પ્રક કરી છે કે નારકામાં મહાનિર્જરાના અભાવ હાય છે, તે કારણે મહાનિર્જરાના ફળ સ્વરૂપ નિર્વાણુના પણ અભાવ હોય છે. સૂત્રકારે આ કથન દ્વારા ये सिद्धान्तनुं प्रतिपादन ड्यु छे ! " यो महावेदन स महानिर्जरः " મહાવેદનાવાળા હોય છે તે મહાનિર્જરાવાળા હાય છે. એવુ' જે પહેલા કહેવામાં આવ્યું છે તે વિશિષ્ટ આત્માને અનુલક્ષીને જ કહેવામાં આવ્યું છે, ક્લિષ્ટ કર્મોવાળા નારકાદિ જીવાને આ કથન લાગુ પડતું નથી. એજ પ્રમાણે "ने महानिः शवाणी होय छे, ते भडावेनावाणी होय छे. " આ કથન પણ પ્રાયિક સામાન્યતઃ સમજવું, કારણ કે અધેાગિકવલી મહાનિર્જરાવાળા હાવા છતાં પણ મહાવેદનાવાળા નથી—પણ હાતા. કહેવાનું તાત્પય એ છે કે એવા કેાઈ નિયમ સ‘ભવી શકતા નથી કે જ્યાં જ્યાં મહા
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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