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________________ ७०२ .... ....... भगवतीसरे इह तेपां प्रमाणम् , एवं प्रज्ञायते, तद्यथा समया इति वा, यावत्-उत्सर्पिणी इति वा, तत् तेनार्थन०। भवनपति वानव्यन्तर-ज्योतिपिक-चैमानिकानां यथा नैरयिकाणाम् ।। सू० ३ ॥ ___टीका-'अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पन्नायए' गौतमः पृच्छति हे-भदन्त ! अस्ति संभवति खल्लु तत्रगतानाम् , अत्र तृतीयार्थे पष्ठी तेन तत्रगतः नरकस्थितैः नरयिकैः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण प्रज्ञायते विज्ञायते यत्-'तं जहा-समया जानते हैं। (से केणष्टेणं ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (इह तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं एवं पन्ना. यए-तं जहा समयाइ वा जाच उस्सप्पिणीइ वा से तेणडेणं०) इस मनुष्यलोक में ही उन समयादिकों का मान होता है यहीं पर उनका प्रमाण होता है और यहीं पर वे समयादिरूप से जाने जाते हैं कि यह समय है-यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है। इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है वाणमंतर, जो इस, वेमाणियाणं जहा रयाणं) जिस प्रकार से समयादिका ज्ञान नारक जीवों को नहीं होतो है ऐसा कहा गया है उसी प्रकार वानव्यन्तर देवोंको, ज्योतिषिक देवोंको और चैमानिक देवोंको भी समयादिकका ज्ञान नहीं होता है ऐसाजानना चाहिये। टीकार्थ-द्रव्य होने के कारण जिप्त प्रकार पुद्गलों का विचार किया गया है उसी प्रकार काल भी द्रव्य है-अतः पुद्गल विचार के बाद काल द्रव्य का विचार सूत्रकार इस सूत्र द्वारा कह रहे हैं-इसमें गौतम स्वामी 3 महन्त ! भा५ २) मे ४ छ। १ (गोयमा!) 3 गौतम ! (इह वेसि माण, इह वेसि पमाणं एवं पन्नायए-त'जहा-समयाइवा, जाव उस्सप्पिणीइवा-से तेण?ण) मा भनुष्यसभir त समयानुं मा५ डाय छे, અહીં તેમનું પ્રમાણ હોય છે, અને અહીં જ (આ મનુષ્યલોકમાં જ) તેમને समयाहि ३२ मणमामा मार छ. रेभ" मा समय छ, (यावतू) मा Graffol stu छ. गौतम ! २९ में छे. (वाणमंतर, जोइस, चेमाणियाणं जहा नेरइयाणं) रेवी रीत समय मानि ज्ञान नारीन डातुं નથી, એવી જ રીતે વાતવ્યન્તર દે, તિષિક દેવ અને વૈમાનિક દેવને પણ સમયાદિકનું જ્ઞાન હેતું નથી તેમ સમજવું. ટીકાર્થ-દ્રવ્ય હોવાને કારણે જેવી રીતે પુલનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે, એવી રીતે કાળ પણ દ્રવ્ય હેવાથી, સૂત્રકાર પલેનું નિરૂપણ કર્યા પછી આ સૂત્રમાં કાળદ્રવચનું નિરૂપણ કરે છે-ગૌતમ સ્વામી મહાવીર
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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