SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 715
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे अन्धकार एव भवति ? भगवानाह - ' गोयमा ! नेरयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे ' हे गौतम | नैरयिकाणां जीवानाम् अशुभाः पुद्गलाः, नैरयिकक्षेत्रस्य पुद्गलानां शुभत्वप्रयोजकरविकिरणादिप्रकाशक वस्तुरहितत्वात् अशुभः पुद्गलपरिणामो भवति । ' से तेणद्वेणं' हे गौतम । तत् तेनार्थेन नैरयिकाणां नो प्रकाशः, अपितु अन्धकार एव भवति । गौतमः पृच्छति - ' अनुरकुमाराणं भंते । किं उज्जोए, अंधवारे ' हे भदन्त । असुरकुमाराणां किम् उद्योतः प्रकाशो भवति, उताहो अन्धकारः ? भगवान् आह - ' गोयमा ! असुरकुमाराणं उज्जोए, णो अंधयारे ' हे गौतम ! असुरकुमाणाम् उद्योतः प्रकाश एव भवति, ने कहा है- सो इसमें क्या हेतु है- गौतम के इस प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभु उनसे कहते है कि ( गोयमा ) हे गौतम! (नेरइयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे ) नैरयिक जीवों के क्षेत्र के पुङ्गल अशुभ होते हैं और उस क्षेत्र के पुद्गलों का परिणाम भी अशुभ होता है क्योंकि उन पुद्गलों में शुभता के प्रयोजक भूत जो सूर्य किरण आदि का सम्पर्क है वह वहां होता नहीं है कारण इसका यह है कि ज्योतिष मंडल तिर्यकर में ही है, अर्ध्वलोक या अधोलोक में नहीं है । ( से तेणद्वेणं) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि नारकों के यहां अंधकार ही अंधकार रहता प्रकाश नहीं रहता है । अब गौतम असुरकुमारों के यहां के विषय में पूछते है (असुरकुमाराणं भंते! कि उज्जोए अंध्यारे) हे भदन्त ! असुरकुमारों के यहां क्या प्रकाश रहता है या अंधकार रहता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि ( गोयमा) हे गौतम! (असुर कुमाराणं उज्जोए, जो अंधारे) असुरकुमारों के उत्तर—“ गोयमा ! " हे गीतंभ ! ( नेरइयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलंपरिणामे ) ना२४ अवाना निवासस्थानानां युद्धस अशुभ होय छे, अने તે ક્ષેત્રના યુદ્ધલાનું પરિણમન પણ અશુભ જ હાય છે, કારણ કે તે પુદ્ગલામાં શુભતાનું પ્રયાજન કરનાર સૂર્યનાં કિરાના અભાવ હૈાય છે. આ પ્રમાણે ખનવાનું કારણ એ છે કે જ્યાતિષ મંડળ મધ્યલેાકમાં જ છે, ઉર્ધ્વ લેાકમાં કે अधोसोभां ज्योतिष भांडण नथी. " से तेणट्टेणं " ते भर में मेवुअ છે કે નારક ક્ષેત્રમાં અંધકાર જ રહે છે, પ્રકાશ હાતા નથી. હવે ગૌતમ સ્વામી અસુરકુમારેશના વિયમાં પણ એવા જ પ્રશ્ન પૂછે છે ( असुरकुमाराणं भते । किं उज्जोर अधयारे ) डे लन्त । असुरकुभारोनां નિવાસસ્થાનામાં શું પ્રકાશ રહે છે કે અંધકાર રહે છે ? (२" गोयमा । " हे गीतभ ! ( असुरकुमाराण उज्जोए, णो अधयारे )
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy