SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे ६५८ " ' " रिशन्मुहूर्तीच अवस्थानकाल: ' माहिंदे चउचीसं राईदियाई, चीस य मृहुत्ता माहेन्द्रे देवलोके चतुर्विधर्ति रात्रिदिशनि, विशति मुहूर्ताथ अवस्थितिकालो भवति 'बंभलोए पंचचचालीस राईदियाई ' ब्रह्मलोके पश्चचत्वारिंशतं रात्रिदिवानि अवस्थितिकालः | 'ए नउई राइंदियाई ' लान्तके देवलोके नवतिं रात्रिंदिवानि भवति अवस्थितिपालः । ' महासुके सहि राईदियसयं महाशुके देवलोके पष्टि रात्रि दिवशतानि, पप्यधिकैकशतं रात्रिदिवानि अवस्थितिकालः, सहरसा रे दो राईदियसयाई' सहस्रारे देवलोके द्वे रात्रिंदिवशते रात्रिंदिवशत द्वयम् अवस्थानकालो भवति, ' आणय-पाणयाणं खेज्जा मासा ' आनत - प्राणतयोः देवलोकयोः संख्येयान मासान अवस्थितिकाली भवति, अत्र विरह कालस्य संख्यातमासरूपस्य द्विगुपितत्वेऽपि संख्यात्तत्वमेव भक्तीत्यवसेयम् । तथाआरण -ऽच्चुराणं संखेन्जाई वासाई' आरणाच्युतयो देवलोक्यो: संख्येयानि ज्योतिषिक, सौधर्म - ईशान इन देवलोकों में अड़तालीस मुहूर्त का अवस्थान काल है । (सर्णकुमारे अट्ठारस इंदियाई चत्तालीसयमहुत्ता) सनत्कुमार देवलोक में अठारह रातदिन और चालीस मुहूर्त का अबस्थान काल है । (माहिंदे चवीस राईदियाई बीसयमुप्ता ) महेन्द्र taara में चौबीस रातदिन और बीस मुहूर्त का अवस्थान काल है । ( बंभलोए पंचचत्तालीस राईदियाई ) ब्राह्मलोक नामके देवलोक में पैंतालीस रातदिन का अवस्थान काल है । ( लंतए नउइ राईदियाई ) लान्तक देवलोक में नव्ये रातदिन का अवस्थान काल है । ( महासुक्के सट्ठि राईदियस ) महाशुक्र देवलोक में एक सौ साठ रातदिन का अवस्थान काल है । (सहस्सारे दो राईदियसयाई) सहस्रार देवलोक में दो सौ रातदिन का अवस्थान काल है । ( आणयपाणयाणं संखेज्जामासा) आनतप्राणत देवलोकों में संख्यात मास का अवस्थान काल है। " १८ रात्रि - हिवस भने ४० मुहूर्तना व्यवस्थान आज छे ( माहि दे चवीसं राई दिवाई वीसय मुहुत्ता ) भाडेन्द्र देवलेोभां २४ रात्रि - हिवस भने २० भुहूर्त। अवस्थान प्राण छे. ( बंभलोए पंचचत लोस राइ दियाइ ) ब्रह्मसोङ नाभना द्वेवो!१भां ४५ रात्रि-हिवसनो व्यवस्थान आज छे. ( लतए नउइ राई - दियाइ' ) सान्त देवसभां ८० रात्रि - हिवसनो व्यवस्थान आज छे. ( महासुक्के सट्ठि राई दियस ) महाशु हेवा मां १६० रात्रि - द्विवसनेो भवस्थान आज छे. ( सहस्सारे दो राइ दियसयाई ) सहस्रार द्वेषसम्म २०० रात्रि-द्विवसने। व्यवस्थान डाण छे. (आणयपाणयाणं संखेज्जा मासा ) आनतआत हेवसोमभां
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy