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________________ 6 teefaer टी० श० ५ उ० ८ सु० २ जीवादिवृद्धिहान्यादिनिरूपणम् ६५५ sवस्थिता अपि भवन्ति, समानानामेव उत्पादात् उद्वर्त्तनाच्च, एवहिं तिहिवि जोण एक्कसमर्थ, उनको सेणं आवलियाए असखेज्जइभागं ' एतेषु त्रिष्वपि वृद्धि - हानि - यथावस्थितेषु एकेन्द्रियाणां जघन्येन एकं समयम्, उत्षर्षेण आवलिकायाः असंख्येयभागात्मकः कालो भवति । 'बेइंदिया बहुत हायंति, तहेब, ' द्वीन्द्रिया अपि जीवाः तथैव - एकेन्द्रिययदेव वर्धन्ते, हीयन्ते, किन्तु 'अवट्टिया जहणणं एकं समयं उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता ' द्वीन्द्रियाः जघन्येन एकं समयम्, उत्वर्षेण द्वौ अन्तर्मुहूतौं अवस्थिता भवन्ति । तत्र एकमन्तर्मुहूर्त विरह 4 थोड़े से जीवों का भरण होने से ये एकेन्द्रिय जीव बढते भी हैं ऐसा कहा है तथा अनेक जीवों का मरण होने से और थोड़े से जीवों का उत्पाद होने से ये एकेन्द्रिय जीव घटते भी हैं ऐसा कहा है । तथा ( अवट्टिया वि) एसा जो कहा गया है सो उसका तात्पर्य ऐसा है कि जय समानों का ही उत्पाद होता है समानों का ही मरण होता है तब ये अवस्थित भी रहते हैं । । एएहि तिहि वि जहणेणं एवकं समयं, उकोसेणं आवलियाए असंखेजाइ भागं ) एकेन्द्रियों की वृद्धि हानि और यथावस्थिति में जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भागप्रमाण समय है । इसका कारण यह है कि इसके बाद यथायोग्य वृद्धि वगैरह होती नही है । (वेइंदिया बडुंति, हायंति तहेव ) दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय जीव भी एकेन्द्रिय जीव की तरह ही बढते हैं और घटते हैं। परन्तु (अवट्टिया जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो અને થાડાં જીવાનું મરણ થવાથી તે એકેન્દ્રિય જીવા વધે પણ છે, એવું કહે. વામાં આવ્યુ છે તથા અનેક એકેન્દ્રિય જીવાનુ મરણ થવાથી અને થાડા એકેન્દ્રિય જીવેાના ઉત્પાદ થવાથી તેમની સંખ્યા ઘટે પણ છે એવું કહ્યુ છે. तथा “ अवट्ठियावि " ” એવું જે કહેવામાં આવ્યું છે તેનુ તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે ઉત્પાદ અને મરણુ સમાન પ્રમાણમાં થાય છે, ત્યારે તે અવસ્થિત ( हानि अथवा वृद्धिना अभाववाजा) याशु रहे छे. ( एए हिं तिद्दिवि जहण्णेण एक समय', उक्कोसेण आवलियाए असंखेज्जइभागं ) येडेन्द्रिय भवानी વૃદ્ધિ, હાનિ અને અવસ્થિતિના કાળ ઓછામાં એછે એક સમય અને વધારેમાં વધારે આવલિકાના અસખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ છે. તેનું કારણ એ છે કે त्यारमाह यथायोग्य वृद्धि वगेरे तु नथी. ( वेइ दिया वढति, हायति तद्देव ) દ્વીન્દ્રિય અને ત્રીન્દ્રિય જીવા પણ એકેન્દ્રિય જીવાની જેમજ વૃધ્ધિ પામે છે माने खास (हानि ) पासे छे. परंतु ( अवट्टिया जद्दण्णेणं एक्कं समय, उक्को
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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