SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 658
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेयप्रन्द्रिका टी० २०५० सू० १ जीवदिवृद्धिहान्यादिनिरूपणम् ६३१ छाया-भदन्त ! इति भगवान गौतमः श्रमणं यावत्-एवम् अवादीत-जीवा: खलु भदन्त ! किं वर्द्धन्ते, हीयते, अवस्थिताः ? गौतम ! जीवा नो वर्धन्ते, नो हीयन्ते, अवस्थिताः । नैरयिका स्लु भदन्त ! किं वर्धन्ते, हीयन्ते, अवस्थिताः ? गौतम ! नैरयिकाः वर्धन्तेऽपि, हीयन्तेऽपि, अवस्थिता अपि यथा नैरयिकाः । एवं यावत्-चैमानिकाः सिद्धाः खलु भदन्त ! पृच्छा ? गौतम ! सिद्धा जीवों की वृद्धि हास आदि की वक्तव्यता (भंते । त्ति भगवं गोयमे ) इत्यादि। ' सूत्रार्थ-(भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं जाव एवं क्यासी) हे भदन्त ! ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महोवीर से इस प्रकार से पूछा (जीवा णं भते ! किं वइंति, हायंति, अवटिया ) हे भदन्त ! जीव क्या बढते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? (गोयमा। जीचा णो वइंति, णो हायंति, अवडिया ) हे गौतम ! जीव न बढ़ते हैं और न घटते हैं-किन्तु वे अवस्थित रहते हैं । ( नेरइयाणं भंते ! कि वडुति हायंति अवट्ठिया ? ) हे भदन्त ! नारक क्या बढते है ? घटते हैं ? या अवस्थित रहते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरच्या वति वि, हायति वि, अवटिया वि) हे गौतम ! नारक घढते भी हैं, घटने भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। (जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया) जैसी यह कथन नारकों के विषय में कहा गया है જેની વૃદ્ધિ, હાસ આદિનું નિરૂપણ "भते ! त्ति भगव' गोयमे " त्याह सूत्रार्थ-" भते ति भगव गोयमे समण' जाव एवं वयासी " " है ભદન્ત !” એવું સંબોધન કરીને ગૌતમ સ્વામીએ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને मा प्रमाणे पूछयु-(जीवाण भते ! किं वडूढंति, हायति अवद्विया ?) ભદન્ત ! જીવમાં શું વધારો થાય છે, ઘટાડો થાય છે, અથવા તે તેમની सध्या मेसीन मेटली १ २६ छ ? (गोयमा । जीवा णो वड्ढति, णो हाय ति अवडियो ) गौतम ! qधतi नथी, घटतi ५ नथी, पाए तो मपस्थित रहे छ. (नेर इयाण मते ! कि वढंति, हाय ति. अवद्विया १). Hard! शु ना२। ? घटेछ १ मपस्थित रहे छ ? (गोयमा !) हे गौतम ! (नेरइया वड्ढति चि, हायति वि अवट्ठिया वि) नारी वृद्धि પણ પામે છે, ઘટે પણ છે અને અવસ્થિત પણ રહે છે. એટલે કે વૃદ્ધિ વગર २९ छ. (जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया) वृद्धि भने निना विषयमा
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy