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________________ भगवतीसूत्रे स्य त्रयोविशत्यधिकशततमे मण्डले स्थितौ जायते । तथा ' तेरसमुहुत्ते दिवसे' त्रयोदश महतो दिवसः रात्तरसमुहत्ताराई' सप्तदश् मुहूर्ता गतिः, एतच्च नक्तंदिव तारतम्यं मूर्यस्य साहिपश्चाशदधिकशततमे मण्डले स्थिती सत्यां भवति । तथा 'तेर समुहत्ताणतरे दिवसे' त्रयोदशमुहूनिन्तरो दिवसः, 'साइरेगा सत्तरसमुहुत्ताराई ' सातिरेका सप्तदशमुहर्ता रात्रिः, अयञ्च दिनरात्र्योर्भेदः सूर्यस्य सार्धतिपश्चाशदधिकशततमे मण्डले स्थितौ संजायते, पुनीतमः पृच्छति-'जयाणं जंबुदीवे दीवे ' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु जम्बुद्वीपे द्वीपे 'दाहिणडे ' दक्षिणा दक्षिणदिग्भागे 'जहण्णए ' जघन्यतः अवरतः 'दुवालसमुहुत्ते दिवसे भव:' सूर्य जय १२३ एकसोतेईसवें मंडल पर स्थिति करता है-तव की अपेक्षा लेकर कहा गया है तथा-(तेरस मुहत्ते दिवसे सत्तरसमुहत्ता राई) तेरह मुहर्त का दिन और सत्तरह मुहर्त की रात्रि होती है ऐसा जो कहा है वह सूर्य जघ १५२ एव सो बाचन मंडल के आगे मार्ग में आता है तब की अपेक्षा से कहा है तथा (तेरसमुहत्ताणतरे दिवसे सवइ साइरेगा सत्तरस मुहत्ता राई भवड ) कुछ कम तेरह महत का दिन जब होता है-तच रात्रि कामान कुछ अधिक सत्तरह महर्त्त का होता है-एमा जो कहा गया है लो वह सूर्य जब १५३ एकसो लेपन वे मडल के आधे मार्ग पर जव संचरण करता है तब की अपेक्षा लेकर कहा गया है। ___अब गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(जयाणं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्डे जहाणए दुयालस गहुत्तदिवसे भवइ, तया णं उत्तरवि ) हे भदन्त ! સેળ મુર્ત કરતાં એટલાં જ વધારે પ્રમાણે વાળી રાત્રિ થાય છે આકથન સૂર્યના ૧૨૩ એકસે તેવીસમાં મંડળમાં સંચરણની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યું छे, मेम समन. तथा ( तेरस मुहुत्तदिवसे, सत्तग्समुहत्ता गई) न्यारे त२ ૧૩ મુહૂર્તને દિવસ થાય છે ત્યારે ૧૭ સત્તર મુહૂર્તની રાત્રિ થાય છે. આ કથનસૂર્યને ૧૫ર એકસે બાવનમાં મંડળના અધ ભાગમાં સ ચરણની અપે क्षा ४२युछे. तथा "तरेस मुहत्ताणतरे दिवसे भवइ साइरेगा सत्तरस मुहुत्ता राई भवइ " च्यारे १३ ते२ मुहूत ४२ता था। माछा प्रभावामा (दमा ૪ ચાર પળ જેટલો ઓછા પ્રમાણને દિવસ થાય છે, ત્યારે ૧૭ સત્તર મુદ્દત કરતાં જ વધુ પ્રમાણવાળી રાત્રિ થાય છે. આ કથન સૂર્યના ૧૫ એકસે તેપન માં મંડળના અર્ધભાગમાં સંચરણની અપેક્ષાએ કરાયું છે. હવે ગૌતમ સ્વામી भडावीर प्रभुने पूछे छे " जयाण जवुद्दीवे दीवे "यारे १ मूद्वीप नामना द्वीपमा “ दाहिणड्ढे जहण्णए दुवालसमुहुत्त दिवसेभवइ, तया ण उतरड्ढे वि"
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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