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________________ ___. भगवती एवावयोधात् इति द्वितीयः २, हेतुबुध्यते-सम्यक्तया श्रद्धत्ते, 'बुध्यते ' अस्यसम्यश्रद्धानार्थकत्वात् इति सृतीयः ३, तथा हेतुम् अमिसमागच्छति साध्यसिद्धौ व्यापारणतः सम्यक्तया प्राप्नोति इति चतुर्थः४, तथा हेतुम् अध्यवसानादिमरणकारणयोगात् परणमपि हेतुस्तं हेतुमदित्यर्थः, छद्मस्थमरणं म्रियते करोति, न केवलिमरणं तस्याऽ हेतुकत्वात् , नापि अज्ञानमरणम् तस्य सम्यग्ज्ञानित्वात् , अज्ञानमरणस्याग्रे वक्ष्यमाणत्वाच, इति पञ्चमः ५ । प्रकारान्तरेणापि हेतूनेव पुनः अपने साध्य के साथ अविनाभावरूप से सामान्यतः जानता है-देखता है-यह द्वितीय हेतु है । तथा-(हेउं बुज्झइ) हेतु अपने साध्य के साथ अविनाभूत होकर ही हेतुरूप से बनाता है-ऐसा जो श्रद्धान करता है। वह तृतीय हेतु है यहां पर बुध ' धातु का अर्थ सम्यक् श्रद्धान् करना ऐसा हुआ है । (हे अभिसमागच्छइ) साध्य की सिद्धि में उनके उपयोग करने से जो उसे प्राप्त करता है यह चौथा हेतु है । (हेछटमत्थमरणं मरह) अध्यवसाय आदि हेतु जो कि-मरण के कारण होते हैं इनके संबंध से छद्मस्थमरण भी हेतु कहा गया है जो इस प्रकार के हेतुरूप-छद्मस्थमरणको करता है वह पांचवां हेतु है । केवलिमरणको यहाँ हेतु में अन्तभूत नहीं किया गया है-कारण वह अहेतुक होता हैं । तथा अज्ञानमरण भी हेतुमें नहीं गिना है क्योंकि वह अज्ञानियोंके-मिथ्यादृष्टियों के होता है-और छद्मस्थमरण सम्यग्ज्ञानियों के होता है अज्ञानमरण का कथन आगे किया जाने वाला है। इस तरह ( हेउं छउमत्थमरणं मरइ ) यह पांचवां हेतु है। दूसरी तरह से भी हेतुओं का સાધ્યની સાથે અવિનાભાવરૂપે સામાન્ય રીતે દેખે છે, તે હેતુને બીજો ભેદ छ. (हेउ बुज्झइ) हेतु पाताना साध्यानी साथै सवितामा१३२ २डीने हेतु રૂપે પ્રકટ થાય છે, એવી જે શ્રદ્ધા રાખે છે, તેને હેતુને ત્રીજો ભેદ કહ્યો છે. मी 'बुधु ' धातुन। “ सभ्य श्रद्धा ४२वी " मेव। म ४२वाना छे. (हे अभिसमागच्छइ) साध्यनी सिद्धिमा तना पा ४२वाथी २ तन प्रास जरी से छे, मा या उतु छे. (हे छउमत्थमरणं मरइ ) अध्यवसाय આદિ હતુ કે જે મરણના કારણ હોય છે, તેના સંબંધથી છવ્રથમરણને પણ હેતુપે પ્રકટ કર્યું છે. જે આ પ્રકારના હિતરૂપ છઘમરણને પ્રાપ્ત કરે છે, તેને પાંચ હેતુ કહ્યો છે. કેવલિમરણને અહીં હેતુમાં સમાવેશ કરવામાં આવ્યું નથી, કારણ કે તે અહેતુક હોય છે. તથા અજ્ઞાનમરણને પણ હેતુમાં સમાવેશ કરાયે નથી, કારણ કે એજ્ઞાનીઓ-મિથ્યાષ્ટિએ-એવું મરણ પ્રાપ્ત કરે છે. છાસ્થમરણ સમ્યજ્ઞાનીઓ પામે છે. અજ્ઞાનમરણનું પ્રતિપાદન આગળ કરવામાં આવશે. આ રીતે છદ્મસ્થમરણને પાંચમો હેતુ કહ્યો છે.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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