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________________ ५६८ भगवतीसूमिश्रितानि, तत्र आसनं - प्रसिद्धम्, शयनं - शय्या, स्तम्भः प्रसिद्धः, भाण्डम् उपकरणम् । व्याणि परिगृहीतानि भवन्ति, तदुपसंहरन्नाह - 'से तेणद्वेणं' हे गौतम! तत् तेनार्थेन तेन कारणेन पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः प्राणिनः सारम्भाः सपरिग्रहा भवन्ति, नो अनारम्भाः, नो वा अपरिग्रहा भवन्ति इत्याशयः । 'जहा तिरिक्खजोणिया तहा near faभाणियन्त्रा' यथा तिर्यग्योनिका जीवाः तथा मनुष्या अपि भणितव्याः वक्तव्याः तथा च पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकवत् मनुष्या अपि सौरम्भाः, सपरिग्रहाः, नो अनारम्भाः, नो वा अपरिग्रहा भवन्ति । एवं ' वाणमतर - जोइस - वेमाणिया जहा भवणवासी तहा नेयव्वा' वानव्यन्तर-ज्योतिष्कवैमानिका यथा भवनवासिनः भवनपतयोऽसुरक्कुमारादय तथा नेतव्याः- ज्ञातव्याः,तथा च तेऽपि वानव्यन्तर- ज्योतिष्क- वैमानिका भवनपतिवत् पृथिवीकायसमा रम्भादारभ्य सचित्ताचित्तमिश्रितं द्रव्यपर्यन्त विषयक परिग्रहयुक्ततया सारम्भाः, सपरिग्रहाः भवन्ति, नो अनारम्भाः, नो अपरिग्रहा इति ॥ ०७ ॥ दव्वाइं परिग्गहियाई भवंति ) आसन, शयन, - शय्या, स्तंभ- खंभा, भ ण्ड - उपकरण ये सब द्रव्य तिर्यंचों द्वारा परिगृहीत होते हैं । (से तेणi) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव आरंभ - और परिग्रह से युक्त होते हैं । ( जहा तिरिक्ख-जोणीया तहा मणुहमा विभागियव्वा) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की तरह मनुष्य भी आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं ऐसा जानना चाहिये । वे आरंभ और परिग्रह रहित नहीं होते हैं । ( एवं वाणमंतर - जोइस वैमाणिया जहा भवगवासी तहा नेयव्वा ) भवनपनियों की तरह वानव्यन्तर, ज्यो. तिक और वैमानिक ये सब भी पृथिवीकाय संबंधी समारंभ से लगाकर मचित, अचित्त और मिश्र इन सब द्रव्यों तक के परिग्रह को धारण मीसियाई दव्बाई परिग्गहियाइ भवति ) मासन, शयन ( शय्या ), स्तल, भ (५४२५ ), सचित्त, अथित्त, मने मिश्र द्रव्योनो पशु तेभनाथी परिश्रड राय छे. ( से तेणट्टेणं) इत्यादि हे गौतम । ते रो में मेवु धुं छे પચેન્દ્રિય તિય ચ ચૈાનીના જીવેા આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત હોય છે, તે भारंभ मने परिश्रद्धथी रहित होता नथी. ( जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा विभाणियव्वा ) पथेन्द्रियोनी नेम भनुष्यो याशु भारल भने परियहुथी युक्त હાય છે. મનુષ્યે અરંભ અને પરિગ્રહથી રહિત હાતા નથી, એમ સમજવુ’ ( एनं माणमंतर, जोइस, बेमाणिया जहा भत्रणमासी तहा नेयत्रा ) भवनयति વેટની જેમ થાનભ્યન્તર ધ્રુવે, યાતિથી બે, અને વૈમાનિક વેને પણ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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