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________________ भगवतीर मिश्रितानि, तत्र आसन-प्रसिद्धम् , शयनं-शय्या, स्तम्भः प्रसिद्धा, भाण्डम्-उपफरणम् । व्याणि परिगृहीतानि भवन्ति, तदुपसंहरबाह-'से तेणटेणं' हे गौतम! तत् तेनार्थेन तेन कारणेन पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः पाणिनः सारम्भाः, सपरिग्रहा भवन्ति, नो अनारम्भाः, नो वा अपरिग्रहा भवन्ति-इत्याशयः । 'जहा तिरिक्ख... जोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियव्या ' यथा तिर्यग्योनिका जीवाः तथा मनुष्या:, अपि भणितव्या वक्तव्याः, तथा च पञ्चेन्द्रियतिर्यगयोनिकवत् मनुष्या अपि .. सौरम्माः , सपरिग्रहाः, नो अनाररभाः, नो वा अपरिग्रहा भवन्ति । एवं ' वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवणवासी तहा नेयव्वा' वानव्यन्तर-ज्योतिष्कवैमानिका यथा भवनवासिनः भवनपतयोऽसुरकुमारादय तथा नेतव्या:-ज्ञातव्याः, तथा च तेऽपि वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-चैमानिका भवनपतिवत् पृथिवीकायसमा , रम्भादारभ्य सचित्ताचित्तमिश्रितद्रव्यपर्यन्तविषयकपरिग्रहयुक्ततया सारम्भाः, सपरिग्रहाः भवन्ति, नो अनारम्भाः, नो अपरिग्रहा इति ।। सू० ७॥ . दवाई परिग्गहियाई भवंति) आसन, शयन,-शय्या, स्तंभ-खंभा, भ.. ण्ड- उपकरण ये सब द्रव्य तिर्यंचों द्वारा परिगृहीत होते हैं । (से तेणढणं) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव आरंभ-और परिग्रह से युक्त होते हैं । (जहा तिरिक्ख-जोणीया तहा मणुरूमा वि भागियन्वा) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की तरह मनुष्य भी आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं ऐसा जानना चाहिये । वे आरंभ और परिग्नह रहित नहीं होते हैं । ( एवं वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवगवासी तहा नेयव्वा) भवनपनियों की तरह वानव्यन्तर, ज्यो तिष्क और वैमानिक ये सब भी पृथिवीकायसंबंधी समारंभ से लगाक- । र मचित, अचित्त और मिश्र इन सब द्रव्यों तक के परिग्रह को धारण मीसियाई व्वाइं परिग्गहियाई भवति ) मासन, शयन (शय्या), २, 3 (ઉપકરણ), સચિત્ત, અચિત્ત, અને મિશ્ર દ્રવ્યને પણ તેમનાથી પરિગ્રહ ४२राय छे. (से तेणडेणं) त्याह.. गौतम! २0 में मे ४थु छ । પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નીના છ આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત હોય છે, તેઓ भार भने परियडथी २डितडत नथी. (जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियव्वा) पयन्द्रियानी भ मनुष्य पर भारभ मन परिवहथी युक्त હોય છે. મનુષ્ય આરંભ અને પરિગ્રહથી રહિત હોતા નથી, એમ સમજવું (पर्ण पाणमंतर, मोइस, बेमागिया जहा भत्रणवासी तहा नेयत्रा) अपनपति ની જેમ વાનખ્યત્તર રે, અતિથી છે, અને માનિક વાને પણ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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