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________________ भगवती हट्टः इत्यर्थः, 'सिंघाडग-तिग- चउक-चच्चर - चउम्मुद्द-महापहा - परिगड़िया भवंति ' शृङ्गाटक त्रिक-चतुष्क, चत्वर चतुर्मुख - महापथाः परिगृहीता भवन्ति, तत्र शृङ्गाटकः :: शृङ्गाटकनाम ( सिंगोडा ), फलविशेषाकार त्रिकोणमार्गविशेषः, त्रिकम् मार्गश्रयमिलनरूपम्, चतुष्कम् - चतुर्मार्गमिलनरूपम् ' चोराहा ' इति भापाप्रसिद्धं स्थानम् चत्वरं बहुमार्ग मिलनरूपम्, 'चौकपदवाच्यम्' चतुर्मुखम् चतुद्वारं स्थानम्, महापथः राजमार्गः इत्यर्थः, 'सगड रह जाण - जुम्गगिल्लि थिल्लि सीय- संद्रमाणिया परि रंगहियाओ भति' शकट-युग्य - गिल्लि थिल्लि शिविका स्यन्दमानिकाः परिगृहीता • भवन्ति, तंत्र शकटम् - गवादिभिरुह्यमानयानविशेषः, रथः अवादिभिरुह्यमानकट "विशेषः, यानं नौकाविशेषः, युग्यम् - सिंहलद्वीपस्थ गोल्ल देशप्रसिद्धम्, गिल्लि: पुरुषद्वयेन ऊ मानलघुयान विशेषः, थिल्लिः अश्वयुक्तयान विशेषः, शिविका-शिख 1 fr " 1 2 , आवणा परिगहिया भवंति ' प्रासाद - राजगृह, गृह, सामान्यघर, शरण - तृणनिर्मित गृह, अथवा पन्नगृह, लयन - पर्वत के ऊपर उत्कीर्ण किया गया. घर, आपण हट्ट - बाजार, ' सिंघाडग, तिग, चउक्क, चच्चर, चउम्मुह - महापहा. परिग्गहिया भवति ' शृङ्गाटक - सिंघाड़े के जैसे आकार वाला मार्ग, जहां पर तीन रास्ते आकर मिलते हैं, चतुष्क - ऐसा मार्ग कि जहां पर चार रास्ते मिलते हैं, भाषा में इसे चौराहा कहते हैं, च . स्वर अनेक मार्गों से मिला हुआ स्थान. आषा में इसे चौक, कहते हैं, चतुर्मुख चार द्वारों वाला स्थान, महापथ- राजमार्ग, सगड-रह- जाण - जुग्ग- गिल्लि थिल्लि - सीय- सदमाणियाओ परिरंगहियाओ भवति ' शकट- गाड़ी - जिसे बैल खींचते हैं, रध-घोड़ा आदि जिसे खींचते हैं, यान- नौका विशेष, युग्य - सिंहलद्वीप के गोल्लदेश में प्रसिद्ध, गिल्ली - दो 21 + 6 आवणा परिगडिया भवति ) आसाह ( राष्ट्रभडेस ), गृह ( सामान्य घर ), शरयु ( या फुटीर ), सयाय ( पर्वतने अतरीने मनावेसु घर ), आय (डुमना ५ भन्तर ) आदि स्थानानो तेया परिथड रे छे. ( सिंघाडंग, तिग, चउक, चुड चुच्वर, चउम्मुद्द, महापद्दा परिग्गद्दिया भवति ) शिंगोडानी आमरना क्यों त्रयु रस्ता " 4 1" 1 - 1 4 J' 2 મળતા હોય તેવા માર્ગને શ્રૃંગાટક કહે છે. ચતુષ્ક એટલે જ્યાં ચાર રસ્તા મળતા હોય એવુ સ્થાન. ચત્વર એટલે જ્યાં અનેક માર્ગો મળતા હોય. એવુ' સ્થાન અથવા ચાક. ચતુર્મુખ એટલે ચાર દ્વારાવાળુ “સ્થાન, માપથ એટલે -રાજમાગ ઉપર્યુક્ત અધાં સ્થાનાના પંચેન્દ્રિય તિય ચા પરિષદ્ધ કરે છે. (सगढ, रह, जाण, जुमा, गिल्ली, बिल्ली, सीय, सद्माणियाओ परिमाहिया ओ भवति ), शत्रु-णणही व3' मेथातु 'गाडु', घोडाभोथी' में याता रथ, यान को { નૌકા ) ગિલ્લિ ( મેં પુરુષા ખભા ઉપર જેને ઉપાડીને ચાલે છે એવી નાની ہو
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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