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________________ अमेयचन्द्रिका टी० श. ५ उ०७ सू०५ परमाणुपुद्गलदीनां निरूपणम् .५६५ कालं' हे गौतम ! परमाणुपुद्गलस्य स्कन्धादिरूपेण परिणामानन्तर पुनः परमाणुत्वप्राप्तौ अन्तरं जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षण असंख्येयं कालम् असंख्यातकालपर्यन्तं भवति । गौतमः पुनः पृच्छति-' दुप्पएसियस्स णं भंते ! खंधस्स अंतर कालओ केवच्चिर होइ ? ' हे भदन्त ! द्विपदेशिकस्य खलु स्कन्धस्य अन्तरं कालतः कियचिर कियत्कालं भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं कहते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं एग समय, उक्कोसेणं असंखेज कालं ) कम से कम एक समय का और अधिक से अधिक 'असंख्यात काल का अन्तर पड़ता है । परमाणु जब अपने परमाणुत्वरूप स्वभाव का परित्याग कर देता है अर्थात् स्कन्धरूप पर्याय से आक्रान्त हो जाता है, तब वह पुनः अपने परमाणुरूप स्वभाव में कम से कम एक समय में और अधिक से अधिक असंख्यात काल में आ जाता है। अब गौतम स्वामी प्रभु से यह पूछते हैं (दुप्पएसियस्स णं भंते । खंधस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ) हे भदन्त | जो दिप्रदेशिक स्कन्ध है उसका अन्तर काल कितना होता है ? अर्थात् किसी विप्रदे: शिक स्कन्ध ने अपनी दिप्रदेशिक अवस्था का परित्याग कर अन्य त्रिप्रदेशिक स्थिति को प्राप्त कर लिया-बाद में वह पुन: अपनी विप्रदेशिक पर्याय में आगयो तो इस पर्याय को छोड़ने के बाद पुन: उसी अवस्था में आने पर कितना अन्तर पड़ता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं (गोयमा ) हे गौतम ! ( जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं .. उत्तर-" गोयमा ! " गौतम ! " जहाण्णेण' एगं समयः, उकोसेणं' असंखेन्जकाल" तम थपामा माछामा माछु मे सभयतुं भने धामी વધારે અસંખ્યાત કાળનું અંતર પડે છે. એટલે કે જે કઈ પરમાણુ પિતાની પરમાણુ પર્યાય ત્યાગ કરીને કન્વરૂપ પર્યાયને ધારણ કરે, અને ત્યારબાદ ફરી પરમાણુ રૂપ પર્યાયને ધારણ કરે, તે એ રીતે મૂળ પર્યાયમાં આવતા તેને ઓછામાં છે. એક સમય અને વધારેમાં વધારે અસંખ્યાત કાળ લાગશે. गौतम स्वाभान प्रश-“दुप्पएसियस्स णं भते ! खंधस्स अंतरं काली केवच्चिर होइ १" महन्त । विदेशी २४न्धनो मत (वि२७ ) કેટલો હોય છે એટલે કે કોઈ ઢિપ્રદેશી સ્કન્ધ પિતાની તે અવસ્થાને ત્યાગ કરીને ક્રિપ્રદેશી સ્કન્વરૂપે પરિણમે છે. ત્યારબાદ ફરીથી તે દ્વિદેશી સ્કલ્પરૂપ પર્યાયમાં આવી જાય છે. તે પિતાની મૂળ પર્યાયને છોડયા પછી ફરીથી એ જ પર્યાયમાં આવતા તેને કેટલા કાળનું અંતર પડે છે?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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