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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी००५ २०७०५ परमाणुपुद्गलादीनां स्वरूपनिरूपणम् ५१९ च्चिरं होई' हे भदन्त ! एकगुणकालकः खलु पुद्गलः कालतः कियच्चिरं कियकालपर्यन्तं भवति तिष्ठति ? भगवानाह - ' गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयम् उक्को सेणं असंखेज्जं कालं ' हे गौतम । एकगुणकालकः पुद्गलः जघन्येन एक समयम्, उत्कर्षेण असंख्येयं कालं तिष्ठति, ' एवं जाव - अनंतगुणकालए " एवं तथैव यावत्-अनन्तगुणकालकः पुद्गलः जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण असंयह पूछते हैं कि जिस पुद्गल परमाणु में कृष्ण वर्ण का एक गुण-एक अंश है । वह कितने समयतक कृष्णवर्ण का एक अंश वाला बना रहता है। (- एगगुणकालए णं भंते । पोगले कालओ केवच्चिरं होइ ) इस - पाठ द्वारा यही गौतम का प्रश्न प्रकट किया गया है - इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि - ( गोयना ) हे गौतम! ( जहणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ) जिस पुद्गल परमाणु में कृष्णगुण का एक ही अंश है- अर्थात् कृष्णगुण का सब से जघन्य अंश है - ऐसा वह पुल परमाणु यदि अपनी इसी स्थिति में रहेगा, तो कम से कम एक समयतक और अधिक से अधिक अमख्यात कालतक रहेगा, बाद में उसमें कृष्णगुण के और अंश चढ जायेंगे । ( एवं जाव अनंतगुणhree) इसी तरह से यह भी समझ लेना चाहिये कि जिम पुद्गल में कृष्णगुण के अनंत अंश है - वह पुद्गल कम से कम एक समयतक और अधिक से अधिक असंख्यात कालतक अपनी इस स्थिति में रह हवे गौतम स्वाभी भहावीर अलुने भेवे। प्रश्न पूछे छे है " एगगुणकालं. " एण भंते! पोग्गले कालओ केवच्चिर होइ ? " हे लहन्त ! के हुगस प२માણુમાં કૃષ્ણવર્ણના એક ગુણ—એક અંશ-રહેલા હોય છે, તે પુદ્ગલ પરમાણુ કેટલા સમય સુધી કૃષ્ણવણુના એક અંશથી જ યુક્ત રહે છે? તેના જવાખ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે— "गोमा ! जहणेण एग समय, उक्कोसेण अस खेज्ज' काल " हे गीतभ ! જે પુલ પરમાણુમાં કૃષ્ણવના એક જ અંશ હાય છે, એટલે કે જે પુદ્ ગલમાં કૃષ્ણુતા એછામા એછા પ્રમાણમાં હોય છે, તે પરમાણુ પુદ્ગલ- તેની એની એ સ્થિતિમાં આછ માં એછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસખ્યાત માળ સુધી રહે છે. ત્યારબાદ તેમાં કૃણુનાનું પ્રમાણ વધી જશે, " एव' जाव अणतगुणक'लए " ने युगसभां मृष्यगुणुना अनंत अश रहेसा હાય છે, તે પુદ્ગલ પણ એછામાં ઓછુ એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે અસખ્યાત કાળ સુધી એની એ સ્થિતિમાં રહી શકે છે. અહીં “નાટ્
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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