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________________ ઈંટર भगवती सूत्रे : रपृशन् आद्यैच, पश्चिमैश्च त्रिभिः स्पृशति, मध्यमैस्त्रिभिः निमतिषेधयितव्यम् । द्विदेशिको यथा त्रिप्रदेशिकं स्पर्शितः एवं स्पर्शयितव्यः यावत् - अनन्त पदेशिकम् । त्रिदेशिक' खलु भदन्त ! स्कन्धः परमाणुपुद्गलं स्पृशन् पृच्छा ? तृतीय- पष्ठनवभैः स्पृशति त्रिपदेशिकाः द्विपदेशिक स्पृशन् प्रथमेन, तृतीयेन, चतुर्थ-पष्ठसप्तम - नवमैः स्पृशति त्रिदेशिकै त्रिपदेशिकं स्पृशन् सर्वेषु अपि स्थानेषु स्कन्धका का स्पर्श करता है तो वह प्रथम के तीन विकल्पों के अनुसार और अन्त के तीन विकल्पों के अनुसार उसे स्पर्श करता है । (मज्झि महिं तिहिं दिप्पडसे हेयचं) मध्यमतीन विकल्पों का प्रतिषेध कर देना चाहिये । (दुपसिओ जहा तिप्पएसियं फुसाविओ एवं फुलावे Doatara अनंत एसियं ) द्विप्रदेशी स्कन्ध जिस पद्धति के अनुसार त्रिप्रदेशि स्कन्ध का स्पर्श करता है उसी तरह से यावत् वह अनन्त प्रदेशी स्कन्ध का भी स्पर्श करता है । (तिपएसिए णं अंते ! खंधे परमाणुणेग्गलं फुरमाणे पुच्छा ) हे भदन्त ! तीन प्रदेशों वाला त्रिप्रदेशि क स्कन्ध परमाणुपुल को किस रीति से स्पर्श करता है ? ( तय-उड नवमेहि मद) हे गौतम! तीन प्रदेशवाला स्कन्ध जब परमाणुपुङ्गल को स्पर्श करता है तो यह तीसरे छठे और नववे विकल्प के अनुसार करता है। (पिसिओ दुग्एसियं फुलमाणे पढमरणं, तरणं, च -स्य छडु सत्तम नवमेहिं फुसइ) तीन प्रदेश वाला पुजल स्कन्ध छिवदेशी ४२ . ( दुप्पएसओ तिप्परसियं फुममाणो आइल्लएहि य पछिल्लएहि य तिहिं फुसइ ) द्विप्रदेशी २४न्ध न्यारे त्रिपदेशी स्मृन्धनो स्पर्श रे छे, त्यारे पडेसां ત્રણ વિકલ્પે અનુસાર અને છેલ્લા ત્રણ વિકલ્પે અનુસાર તેના સ્પર્શ કરે છે. ( मज्झिमहि तिहि विष्पडिसे हे यव्वं ) १स्येना भए विडय अनुसार, द्विप्रदेशी शुन्धनी त्रिअदेशी सुन्ध साथै स्पर्शना थती नथी, शुभ समभवु. (दुष्प'एसिको उहा तिप्पएसियं फुलाविओ एवं फुसावेयव्वो जांब अणतपएसिय' ) દ્વિદેશી સ્કન્ધ જે પદ્ધતિ અનુસાર ત્રિગ્રંદેશી ધૂના સ્પર્શ કરે છે, એજ પદ્ધતિ પ્રમાણે તે અનત દેશી સ્કન્ધ પર્યન્તના સ્કન્ધાના પણ સ્પર્શી કરે , urg. (facqgfagó sià ! #à'qzargains' Famiò 9*31.) હે ભદન્ત ! ત્રણ પ્રદેશોવાળા ત્રિપ્રદેશિક સ્કન્ધ પરમાણુપુદ્ગલના કેવી રીતે स्पर्श रे छे ? ( तइय, छदु नवमेहि फुसइ) ड़े लहन्त । त्रिप्रहेशि४ सुन्ध જે પરમાણુ યુદ્ધલા સ્પશ કરે તેા ત્રીજા, છઠ્ઠા, અને નવમાં વિકલ્પ અનુસાર ते तेनास्रे छे. ( तिनपसिओ - दुपएसिय फुसमाणे पढमरणं, तइरणं, उत्य, छदू, सतम, नवमेहिं फुबह ) त्रिप्रदेशिङ ४ द्विप्रशिद्ध न
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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