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________________ 1 { प्रमेयचन्द्रिका टी० श०५ ३०७ ० ३ परमाणुपुद्गलादिविभागनिरूपणम् ४७३ एसओ तहा जे समा ते भाणियव्वा, जे विसमा, ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा । संखेजपएसिएणं भंते! खंधे किं सअड्डे पुच्छा ? गोयसा ! सिय सअड्डे, अमज्झे. सपएसे, सिय अणड्डे. समज्झे, सपए से, जहा संखेजपएसिओ तहा असंखेज्जपएमओ वि, अनंतपएसओ वि ॥ सू० ३ ॥ " छाया - परमाणुपुद्गलः खलु भदन्त । किं सार्धं समध्यः समदेशः, उताहो अनर्धः अमध्यः, अप्रदेश: ? गौतम ! अनर्थ: अमध्यः, अप्रदेशः, नो सार्घः, नो समध्यः, नो समदेशः । द्विप्रदेशिकः स्कन्धः किम् सार्धः, समध्यः, प्रदेश ' परमाणु पुल आदि विभाग वक्तव्यता " परमाणु पोग्गलेणं भंते ! किं स अड्डे ' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( परमाणुपोग्गले पण अंते ! किं सअड्डे, समज्झे, सपएसे, उदाहु अणड्डे, अमज्झे, अपए से ) हे भदन्त ! परमाणुरूप पुद्गल क्या अर्धभाग सहित होता है ? मध्यभाग सहित होता है ? प्रदेश सहित होता है ? अथवा वह अर्धभाग चिना का होता है ? मध्यभाग विना का होता है ? या प्रदेश से रहित होता है ? (गोमा ) हे गौतम | ( अणड्डे, अनज्झे, अपएसे, णो सअड्डे, णो समझे, णो सपपसे ) परमाणुरूप पुद्गल न अर्धभोग सहित होता है, न मध्यभाग महित होता है और न वह प्रदेशों से सहित ही होता है इस कारण वह अर्धभाग से रहित, मध्यभाग से रहित एवं प्रदेशों से रहिन कहा પરમાણુપુદ્ગલ આદિના વિભાગનું કથન सपए, उदाहु परमाणुपोग्गलेण भंते! कि सअड्ढे " त्याहिसूत्रार्थं - परमाणुपोग्गलेण भरते ! कि सअड्ढे, समज्झ अणड्ढे, अमज्झे, अपएसे १ ) डे लहन्त । परमाशु ३५ युद्धस शुं अर्ध लाग સહિત હાય છે ? શુ' મધ્યભાગ સહિત હોય છે ? શું પ્રદેશ સહિત હાય છે? અધભાગ વિનાનું હાય છે? મધ્ય ભાગ વિનાનું હોય છે ? કે પ્રદેશથી રહિત ાય છે? અથવા " गोयमा । " हे गौतम । अणड्ढे, समझे, अपपसे, णो सअइढे. जो समज्झे, णो सपएसे ) परमाणु ३५ युद्धस अर्ध लाग सहित हेोतु' नथी. मध्य ભાગ સહિત પણ હેતુ નથી અને પ્રદેશોથી યુક્ત પણ હાતુ નથી એ જ રણે તેને અભાગી રહિત, મધ્યભાગથી રહિત અને પ્રદેશોથી પશુ રહિત भ ६० 66
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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