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________________ ४५८ . - भगवती देशः एकभागः एजते रयात् कदाचित् देश एकभागो नो एजते, ३ 'सिय देसेएयइ-णो देसा एयति' स्यात् कदाचित् देशः एकभागः एजते, नो देशाः त्रिभागा एजन्ते, ४ 'सिय देसा एयंति-नो देसे एयइ ' स्यात् कदाचित् देशा त्रिभागरूपा एजन्ते, नो देशः एकभागः एजते, ५ 'सिय देसा एयंति-णो देसा एयंति' स्यात् कदाचित् देशौ द्विमागरूपौ एजेते, नो देशौ अपरद्विभागरूपौ एजेते, ६ 'जहाचउप्पएसिओ तहा पंचपएसिओ, तहा जाय - अणंतपएसिओ' यथा चतुष्पदेशिकस्कन्धविषयक आलापकस्तथा पश्चप्रदेशिकस्कन्धविषयकोऽपि आलापको विज्ञेयः, तथा यावत् – अनन्तपदेशिनस्कन्धविषयकोऽपि आलापका स्कन्ध का एक भाग कंपित होता है, और एक भाग कंपित नहीं होता है। (सिय देसे एयइ णो देसा एयंति ) कभी उसका एकभाग ही कंपित होता है और उसके अनेक भाग अर्थात तीन भाग कंपित नहीं होते हैं। (लियं देला एयति नो देसे एयइ) कभी उसके तीनभागरूप देश कंपित होते हैं और एकभागरूप देश कंपिन नहीं होता है । (सिय देसा एयंति, णो देशा एयंति) कभी उसके पहिले दो भाग कंपित होते हैं और दूसरे दो माग कंपित नहीं होते हैं। (जहा चउप्पए सिओ तहा पंच एएसिओ तहा जाच अणंतपएलिओ) जिप्त प्रकार से चार प्रदेशों वाले पौद्धलिक रकन्ध के विषय में यह पूर्वोक्तरूप से अर्थात् आलापक रूप से कथन स्पष्टीकरण किया गया है उसी प्रकार से पांच प्रदेशों वाले पुद्गल स्कन्ध के विषय में भी आलापक जानना चाहिये । और इसी तरह से अपने आप ही यावत् अनन्तप्रदेशोंवाले पुद्गल स्कन्ध के विषय में भी आलापक जान लेना चाहिये। यहां यावत् તે સ્કન્ધને એક ભાગ કેપિત થાય છે અને એક ભાગ કેપિત થતું નથી. (सिय देसे एयइ णो देसा एयति) ध्यारे तन मा पित थाय छ मन तना मन मास मेट सास पित यता नथी. (सिय देसा एयति नो देसे एयाति) ध्या२४ तना ऋण मास ३५ हेश पित थाय छ भने मे मा ३५ हेश पित थत नथी. (सिय देसा एयति णो देसी एयति.) કયારેક તેના પહેલા બે ભાગ કપિત થાય છે અને બાકીના બે ભાગ કપિત यता नथी. (जहा चउप्पएसिओ तहा पचपएसि ओ तहा जाव अणतपएसिओ) જે પ્રમાણે ચાર પ્રદેશેવાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધ વિષે ઉપર કહ્યા મુજબનું સ્પષ્ટીકરણ કરવામાં આવ્યું છે–એટલે કે તેના વિષે જેવા આલા ક આપવામાં આવેલા છે એવા જ આલાપકે પાંચ પ્રદેશેવાળા પુદ્ગલ સ્કન્ધ વિષે સમજી લેવા.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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