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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ५ ० ७ सू० १ परमाणुपुद्गलस्वरूपनिरूपणम् ४५५ किम् ? | भगवान्: आह-' गोयमा ! सिय एयर, वेयइ, जात्र - परिणम ' हे गौतम ! स्यात् कदाचित् परमाणुपुद्गलः एजते कम्पते सर्वपुद्गलेषु एजनादीनां . कादाचित्कत्वात् व्येजते विशेषेण कम्पते १ यावत्-परिणमति, अथ ' सिय णो एइ, जाव - णो परिणम ' स्यात् कदाचित् नो एजते, यावत्-नो परिणमति २ । गौतमः पुनः पृच्छति - ' दुप्पएसिएणं भंते ! खंघे एयह, जाव - परिणमइ ? हे जाता है क्या ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं कि ( गोयमा) हे गौतम । ( सिय एइ, वेग्रइ, जाव परिणमइ ) पुद्गल परमाणु कदाचित् सामान्य विशेष दोनों रूप से भी कंपता है, क्यों कि सर्व पुद्गलों में कंपन होने रूप क्रिया सर्वदा नहीं होती है कभी २ ही होती है । इसी . कारण से सूत्रकार ने ( सिय एयइ, वेएइ, जाव परिणमइ ) ऐसा पाठ कहा है। परमाणु पुद्गल में जब एजनादि क्रियाऍ कादाचित्क हैं तो इस से यह बात अपने आप ही प्रमाणित हो जाती है कि उस उस भोवरूप से पुल परमाणु का परिणमन होना यह भी कादाचित्क ही है । सामान्य रूप से कंपित होना इसका नाम एजन और विशेष रूप कंपित होना इसका नाम व्येजन है । ( सियणो एयह, जाव णो परिणमइ ) अतः वह पुद्गल परमाणु कभी नहीं भी कंपता है यावत् उस उस भावरूप से वह कभी नहीं भी परिणमता है। इस प्रकार एक पुद्गल परमाणु ' के विषय में कृतशंका का समाधान प्राप्त कर अब गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं कि ( दुप्पएसिए णं भंते । खंधे एयइ जाव परिणमइ ? ) हे गौतम स्वाभीना प्रश्नने उत्तर आयता महावीर अलु उहे छे - ( गोयमा ! स्त्रिय एयइ बेयइ, जाव परिणमइ ) हे गौतम! युद्धस परमाणु श्यारेऽ सामान्यु વિશેષ બન્ને રૂપે પણ ચાલે છે, કારણ કે સ પુદ્ગલેામાં કંપન થવાની ક્રિયા થતી નથી, કાઈ કાઈ વખતે જ થાય છે. તેથી એ ક્રિયા કયારેક થાય છે, એવું આ સૂત્રષાઢમાં સૂત્રકારે પ્રતિપાદન કર્યું છે. પરમાણુ પુદ્ગલમાં એજન (ક પન) આદિ ક્રિયાઓ કયારેક જ થાય છે, તે તેના દ્વારા એ વાતનું આપોઆપ પ્રતિપાદન થઈ જાય છે કે તે તે ભાવરૂપે પુદ્ગલ પરમાણુનું પરિણમન પણ ક્યારેક જ થતું હેાય છે. સામાન્ય રૂપે ક પવુ તેનું નામ 'सेवन' छे भने विशेष ३ये यवु तेनुं नाम 'व्येन्न' छे. ( सिय णो एयइ, जाव णो परिणमइ ) તે પુદ્ગલ પરમાણુ કયારેક નથી પણ કંપતુ, અને તે ભાવરૂપે કયારેક તે પરિણમતુ પણ નથી. આ પ્રમાણે એક પુદ્ગલ પરમાણુ વિશેના પ્રશ્નોનુ સ્પષ્ટી કરણ મેળવીને હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રદેશવાળા સ્કંધના વિષયમા પ્રશ્ન પૂછે छे - ( दुप्परखिए णं भते ! खधे एयइ जाब परिणमइ ? ) हे लहन्त । अहे
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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