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________________ ધરટ भगवती सूत्रे I यांवत् राजपिण्डम् | आधाकर्म ' अनवधम् ' इति बहुजनमध्ये प्रज्ञापयिता भवति स तस्य यावत् अस्ति आराधना ? यावत् - राजपिण्डम् ॥ ०७ ॥ टीका - अनन्तरोक्ता वेदना ज्ञानाद्याराधनाया अभावेन जायते, अन आराधनाSनाराधनास्वरूपमाह-' आहाक्रम्मं ' इत्यादि । ' आहाकम्मं ' अणवज्जे ' त्ति मणं पहारेत्ता भवति ' यः खलु प्राणी आधाकर्म ' अनवद्यम् ' अनिन्दितम् इति मनः प्रधारयिता भवति मनसि अवधारणां करोति ' सेणं तस्स ठाणस्स अणालोजानना चाहिये । (आहाकम्मं णं' " अणवज्जे ' त्ति बहु जणमज्झे पन्नवन्ता भवइ, सेणं तस्स जाव अस्थि आराहणा - जाव राय पिंड) हे भदतं ! आधाक निर्दोष है इस तरहसे अनेक मनुष्यों में जो जताने वाला होता है उसे यावत् राजपिण्ड तक पहले की तरह से जानना चाहिये । टीकार्थ- अनन्तरोक्त वेदना ज्ञानादिक की आराधना के अभाव से होती है, इस लिये सूत्रकार आराधना और अनाराधना के स्वरूपको इस सूत्र द्वारा प्रकट करते हैं " आधाकर्म आहार - अनवद्य निर्दोष हैं " इस प्रकार से अपने मन में निश्चय करता है " से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ " वह उस आधाकर्म रूप स्थानकी नं आलोचना करता है और न प्रतिक्रमण करता है। इस तरह आलोचना प्रतिक्रमण के विना ही यदि वह मर जाता है तो ऐसा मनुष्य आधिक नहीं होता है अर्थात् अनालोचित और अप्रतिक्रान्त मनुष्य के आराधना नाव रायविड' ) हे गौतम! या विषयभां पशु रात्रचंड पर्यन्तना पूर्वेति उ५२ ह्या प्रभा ४ समन्धुं ( आहाकम्मं अणवज्जे त्ति अन्नमन्नस अणुप्पदावइत्ता भवइ से णं तस्स० ? ) हे लहन्त ।' आधार्म निर्दोष छे, 'शुभ કહીને પરસ્પરને-એક બીજાને આહાર અપાવનારને શું આરાધના થાય છે? ( एवं पि तचेत्र जाव रायपिड ) हे गौतम! खाना वा पशु रात्रपिंड पर्यन्तना पूर्वोक्त नवा प्रमाणेन समय आहाकम्मं णं अणवज्जे त्तिं ' बहु जण मज्झे पन्नवइत्ता भवद्द, से णं तस्स जाव अस्थि आराहणा ? -जाव रायपिंड ) हे लहन्त ! “ साधाभ निर्दोष छे, " मेवु भने मनुष्यो सभक्ष પ્રજ્ઞાપના કરનાર સાધુને શું આરાધક કહી શકાય છે ? હે ગૌતમ! આ વિષયમાં પણ " रात्रपिंड ” पर्यन्तनुं पूर्वोस्त उथन श्रड ४२ लेये. ટીકા”—ઉપરના સૂત્રમાં જે વેદનાના ઉલ્લેખ કરાયેા છે, તે વૈદ્યના જ્ઞાનાદિકની આરાધનાને અભાવે થાય છે, તેથી સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા આરાधना भने अनाराधनानुं स्वय मतावे छे - ( आहाकम्मं अणवज्जे त्तिं मणं पहारेंत्ता' भइ ) અથવા સાધુ ". मांधाऽर्भ हि दोष युक्त आहार
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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