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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० ६ सू० ३ धनुर्विषये निरूपणम् ४१५ ____टीका-उपयुक्तवाणप्रक्षेपादिक्रिया विपये एव किञ्चिद् विशेषवक्तव्यतामाह-'अहेणं' इत्यादि । ' अहेणं से उम्मू अपणो गुरुयत्ताए, भारियताए, गुरुसंभारियत्ताए, अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई पागाई, जाव-जीविआओ ववरोवेइ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त! अथ खलु स इषुः वाणः आत्मनः-स्वस्य गुरुक'तया गुरुत्वेन, भारिकतया-भारेण, गुरुसंभारिकतया, गुरुखभाराभ्याम् , अधः विस्रसया-स्वभावेन प्रत्यवपतन् मध्ये मार्गमागच्छन् यान् प्राणान् प्राणिनो टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा उपर्युक्त बाण प्रक्षेपादिरूप क्रिया के विषय में ही कुछ विशेष वक्तव्यता प्रकट की है। इस में गौतम ने प्रभु से पूछा है कि ( अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्तीए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीसलाए पच्चावयमाणे जाई पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेह ) हे भदन्त ! ऊपर आकाश में प्रक्षिप्त किया गया वह बाण जब अपने निजी गुरुत्व से, भार से एवं गुरुत्व और भार इन दोनों गुणों से युक्त होने की वजह से नीचे की ओर स्वभावत: आने लगता है, तब आते समय बीच मार्ग में वर्तमान जिन प्राणियों को, यावत् भूतों को, जीवों को, सत्त्वों को, वह नष्ट करता है, उनके शरीर को संकुचित कर देने से उन्हें गोले के जैसा गोल कर देता है, स्वयं में उन्हें श्लिष्ट कर देता है, आपस में एक दूसरे से एक दूसरे को चिपका देता है, परस्पर में शरीरों के साथ उन्हें एकत्रित कर (जेवि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उबगहे वईति, वि यणं ते जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहि पुट्ठः) तथा २ वा नाय ५४di त माना સહાયક બને છે તે છે પણ કાયિકી આદિ પાંચે કિયાએથી સ્પષ્ટ થાય છે. ટીકાર્થ–પહેલાંના સૂત્રમાં બાણ ફેંકવાની ક્રિયા કરનાર કયી કયી કિયાઓ જન્ય કર્મબધ છે, તે વાતનું નિરૂપણ કરાયું છે. હવે એજ વિષયને અનુલક્ષીને વિશેષ નિરૂપણ કરવા માટે સૂત્રકાર નીચેના પ્રશ્નોત્તર આપે છેगौतम स्वामी महावीर प्रभुने मे प्रश्न पूछे छे है (अहे ण से उसू अप्पणो गुरूयत्ताए गुरूसंभारियचाए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई पाणाई जाप जीवियाओ ववरोवेइ) 2 PALEशम ३४ामा मावg a मा न्यारे तेना પિતાની જ ગુરુતાથી, તેના પિતાના જ ભારથી, અને ગુરુતા સંભારતાના ગુણથી યુક્ત હોવાને કારણે સ્વાભાવિક રીતે જ નીચે આવવા માંડે છે, ત્યારે તેના માર્ગમાં આવતાં પ્રાણીઓને, ભૂતને, જીને અને સને સંહાર કરે છે, તેમના શરીરને સંકુચિત કરીને ગોળ ગોળા જેવું કરી નાખે છે, પિતાની સાથે જ તેમને ચિપકાવી નાખે છે, એક બીજાનાં શરીરને અથડાવી
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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