SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ भंगवतीसूत्र जाव-पचहि किरियाहि पुढे येपामपि च खलु वनस्पत्यादिजीवानाम् काष्ठादि. शरीरैः धनुः निर्वर्तितं निष्पन्न तऽपि च खलु धनुर्निवेतने हेतुभूता वनस्पल्यादिजीवाः कायिक्या यावत्-प्राणातिपातक्रियया पञ्चभिः स्पृष्टाः - तादशक्रियाजनितकर्मणा सम्बद्धा भवन्ति, धनुपः कायिक्या दियावत्माणातिपातक्रियाहेतुतया तन्निर्वर्तनहेतुभूतजीवानामपि पापकर्मवन्धो भवनीत्याशयः, ‘एवं धणुं पुढे पंचहिं किरियाहिं ' एवं तथैव धनुः पृष्ठं धनुर्दण्डगुणादिसमूहः तस्य पृष्ठ पृष्ठभागः पञ्चभिः क्रियाभिः, तथा 'जीवा पंचहि, ण्डारू पचहि, उस पंचहि, सरे, पत्तणे, फले, हारू पचहि ' जीवा प्रत्यञ्चा पञ्चभिः स्नायुः पञ्चभिः, इषुः शरपत्रफल स्नायुसमुदायः पञ्चभिः । प्रत्येकभवमाश्रित्याह - शरः वाणः पञ्चभिः, पत्त्रणम् जिन वनस्पतिकायिक आदि जीवों के काष्ठादि शरीरों द्वारा धनुप निपन्न हुआ है ऐसे वे धनुष के निष्पन्न होने में कारणभूत वनस्पत्यादिक जीव कायिकी क्रिया से लेकर प्राणातिपातिकी आदि ५ क्रियाओंसे स्पृष्ट हैं इन क्रियाओं से जन्य कर्मों द्वारा घद्ध हैं तात्पर्य कहने का यह है कि धनुष कायिकी आदि से लगाकर प्राणातिपात तक की ५ क्रियाओं का जब हेतु माना गया है इस धनुण के निष्पन्न होने-बनाने में कारण भूत जो जीव हुए हैं वे भी पापकर्म के बंधक होते ही हैं। . ( एवं धणुपुढे पंचहिं किरियाहिं ) दण्ड गुणादिक का समूहरूप जो धनुष है, सो इसका जो पृष्ठभाग है वह धनु पृष्ठ भी पंच क्रियाओं से तथा (जीवापंचहिं, पहारूपंचहिं उनू पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले हारु, पहिं जीया ) धनुप की जो डोरी है, वह भी पांव क्रियाओं से युक्त है, કાકદિ શરીરો દ્વારા ધનુષ બનેલું હોય છે, તે વનસ્પતિકાયિક આદિ છો કાયિકિથી લઈને પ્રાણાતિપાતિકી પર્યન્તની પાંચ ક્રિયાઓથી પૃષ્ટ બને છેએટલે કે એ ક્રિયાઓ દ્વારા જે પાપને બંધ કરાય છે, તે પાપને બાંધનાર બંધક તેઓ પણ બને છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે ધનુર્ધારી તે કાયિકી આદિ પચે ક્રિયાજન્ય પાપને બંધ કરનાર બને જ છે. એટલું જ નહીં પણ તે ધનુષ્યના નિર્માણમાં જે જે છે કારણભૂત બનેલા હોય તે જ પણ એ पांय यानन्य शुभम धना म५ ४२नार भने छे “ एव धणुपुटूठे पंचहि किरियाहिं" गुणाधिना सभू३५ २ धनुष छ, तेना १४ सागर धनुः १४ ४ छ. त धनु:४ ५ पाय डियामाथी स्पृष्ट थाय छ, तथा " जीवा पचहि हारू पंचहि, उसू पंचहि, सरे, पत्तगे, फळे, हारू पंचहि" धनुषनी દેરી (પ્રત્યંચા) પાસે ક્રિયાઓથી યુક્ત હોય છે, બાણુ પણ પાંચે કિયાએથી યુક્ત હોય છે. બાણને મૂળ ભાગ (પત્રણ) પણ પાંચે કિયાએથી યુક્ત હોય -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy