SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टी० २०५उ०६०२ भाण्डविक्रयणाशिकायकर्मबंधनिरूपणम् ३९३ तदायत्तत्वाभावात् इत्याशयः । 'धणे य से उवगीए सिया जहा-पढमो-आला• वगो, भंडे य से अणुवणीए सिया तहा नेययो' यदा धनं मूल्यं च तस्य क्रयिक स्य सकाशात उपनीतं गाथापतिना उपलब्धं स्यात् तदा यथा प्रथम:-आलापकः -'भाण्ड च तस्य गृहपतेः सकाशात् क्रयिकेण अनुपनीतं स्यात् तथा ज्ञातव्यः तथा च उपनीतधनविषयकालापको निम्नप्रकारको वोध्या-" गाहावइस्म ण ते ! भंड - विकिणमाणस्स कइए भंड साइग्जेज्जा, धणेय से उवणीए सिया गाहावइस्स णं भंते ! ताओ धगाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? ५, भाण्डों का मूल्य रूप धन खरीदने वाले के पाल ही रहा हुआ होने के कारण उस निमित्त आरंभिकी आदि क्रियाएँ गुरुमात्रा में उसी खरीददार को लगेगी बेचने वाले गाथापति को नहीं । इसी कारण ये यहां पर अल्पमात्रा में हैं, ऐसा प्रकट किया गया है । (धणे य से उवणीए सिया, जहा पढमो आलावगो, भंडेय से अणुवणीए सिया तहा नेयव्वो) जप खरीददार के पास से वेचने वाला गाथापति अपने भाण्डों का मूल्य प्राप्त कर चुकता है-ऐसी स्थिति में धननिमित्तक आरंभिकी आदि क्रियाएँ किसे लगती हैं? तो इस विषय में प्रभु कहते हैं कि जैसा प्रथम आलापक अनुपनीत भाण्ड के विषय में कहा गया है वैसा ही आलापक समझना चाहिये-वह आलापक इस प्रकार से है(गाहावइस्स णं भंते ! भंड विश्किणमाणस्स कइए भंड साइज्जेज्जा धणे य से उवणीए सिया, गाहावइस्स णं भंते ! ताओ धणाओ किं શેની કીમત રૂપ ધન ખરીદનારની પાસે જ રહેલું હોવાથી, તે ધનને નિમિત્તે લાગતી આરંભિકી આદિ ક્રિયાઓ અધિક માત્રામાં ખરીદનારને જ લાગશે, વેચનારને લાગશે નહીં. તેથી જ અહીં એવું કહ્યું છે કે વેચનારને તે ક્રિયાઓ અલ્પ માત્રામાં લાગશે. (धणे य से उवणीए सिया, जहा पढमो आलायगो, भंडेय से अणुवणीए सिया तहा नेयवो) ल्यारे भरी ४२नार ०यति पासेथा ते पास। वयनार વ્યક્તિને તેનાં વાસણોની કીમત મળી જાય છે, ત્યારે ધનનિમિત્તક આરંભિકી ક્રિયાઓ કેને લાગે છે? ખરીદનારને લાગે છે કે વેગનારને? તે આ પ્રશ્નના જવાબમાં મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે અનુપનીત (ન લઈ જવામાં આવેલાં) વાસણેના વિષયમા જે આલાપક (પ્રશ્નોત્તર) આપવામાં આવેલ છે એ જ मासा५४ मही पाय सभरवा. ते मालाप नीचे प्रमाणे -(गाहायरस मते ! भंड विविकणमाणस कइए भंड साइजेज्जा, धणे य से उवणीए सिया, गाहावइरस ण मते ! ताको धणाओ कि ओर भिया किरिया कज्जड ? ५ कइय भ ५०
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy