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________________ ३८ भंगवतीसूत्र पतेस्तु महत्यस्ताः क्रियाः भाण्डस्य तदायत्तत्वात् । अथ गौतमः पुनः पृच्छति'गाहावइस्स णं भंते ! भंड विकिणमाणस्स, जाव-भंडे य से उवणीए सिया' हे भदन्त ! यदा गाथापतेः खलु भाण्ड विक्रीणानस्य यावत्-क्रयिको भाण्डौं स्वादयेत् , भाण्डं च तस्य क्रयिकस्य ग्राहकस्य उपनीतम् उपलब्ध स्यात् यदा गाथापतेः सकाशात् क्रयिकेण भाण्डमुपलब्धमित्याशयः, तदा-' कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ, जाव-मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ ?' हे भदन्त ! क्रयिकस्य ग्राहकस्य खलु तस्मात् भाण्डात् किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते ? यावत्-मिथ्यादर्शनपत्यया क्रिया क्रियते भवति ? 'गहावइस्स उठाया नहीं है-अतः इनके निमित्त को लेकर जो इन आरंभिकी आदि क्रियाओं में महत्ता आनी चाहिये थी वह नहीं आती है । गाथापति के जो इन क्रियाओं में महत्ता कही गई है उसका कारण सिर्फ यही है कि वे भाण्ड अभीतक उसकी मालिकी में ही रखे हुए हैं-अतः उन भाण्डोंके आश्रित होरही क्रियाओंमें गुरुतो स्वतः ही आ जाती है। अब गौतम स्वामी प्रभु से पुनः पूछते हैं कि (गाहावइस्स गं भंते ! भंडं विकिणमाणस जाव भंडे य से उवणीये सिया) हे भदन्त गाथापति जब अपने उन भाण्डों को खरीददार के यहां पूर्णरूप से पहुँचा देता है अर्थात्-खरीदार जब उन माण्डों को गाथापति के यहां से ले जाकर अपने अधीन में कर लेता है, तब (कयस्त णं भंते ! किं आरंभिया किरिया कज्जइ ? जाव मिच्छादसण वत्तिया किरिया कज्जा) हे भदन्त ! जो उन भाण्डों का खरीददार जिसने अपने उन्हें अपने अधीन कर लिया है, उसे क्या उन आण्डों के निमित्त से आरंभिकी ત્યાંથી હજી સુધી તે વાસણે પિતાને ત્યાં પહોંચાડયા નથી તે કારણે તે ક્રિયાઓમાં જે અધિકતા હોવી જોઈએ તે આવતી નથી. વાસણે વેચનારને તે કિયાએ અધિક પ્રમાણમાં લાગવાનું કારણ એ છે કે તે વાસણ હજી સુધી તેને ત્યાં જ તેને આધીન પડેલાં છે. તેથી તે વાસણને નિમિત્તે તે ક્રિયાઓમાં ગુરુતા આપોઆપ આવી જાય છે. डवे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने श्रील प्रश्न पूछे छे है-" गाहावइस्स णं भंते ! भंड विकिणमाणस जाव भडे य से उवणीये सिया” 8 महन्त ! न्यारे વાસણ ખરીદનાર તે વાસણને તે વ્યાપારીને ત્યાંથી પિતાને ત્યાં લઈ જાય છે. तपासवान पाताने आधीन ४d a -त्यारे “कइयस्स ण भते । किं आर'भिया किरिया कज्जइ ? जाब मिच्छादंसगवत्तिया किरिया कज्जा ? " તે વાસણ પિતાને ત્યાં લઈ જનાર માણસને વાસણને નિમિત્તે આરંભિકીથી
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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