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________________ - प्रमेयश्चन्द्रिका टीका श. ५ उ०६ सू० १ कर्मविषये निरूपणम् ३६. छाया-कथं खलु भदन्त ! जीवाः अल्पायुष्कतायै कर्मप्रकुर्वन्ति ? गौतम ! त्रिभि स्थान, तद्यथा-प्राणान् अतिपात्य, मृषा उक्त्वा, तथारूपं श्रमण वा ब्राह्मिणं वा मासुकेन अनेषणीयेन, अशन-पान-खादिम-स्वादिमेने प्रतिलाभ्य, एवं खेल जीवा अल्पायुष्कतायै कर्म प्रकुर्वन्ति । कथं खलु मैदन्त ! जीवी दीर्घायुष्कतायै कर्म प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! त्रिभिः स्थानः, तद्यथा नो पाणान् कर्मविशेष वक्तव्यता'कह णं भंते ! इत्यादि । सूत्रार्थ- ( कह णं भंते ! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ) हे भदन्त ! जीव अल्पायुष्यतो का उपार्जन करने के लिये कर्म किस २ कारण को लेकर के बांधते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिहिं ठाणेहिं) तीन स्थानरूप कारणों को लेकर जीव अल्पायुष्यता के निमित्तंभूत कर्म का बंध करते हैं । (तं जहा) वे तीन स्थानरूप कारण ये हैं-(पाणे अइ वाएत्ता, मुसंवइत्ता,तहास्वं समणं वा, माहणं वा अफासुएणं, अणेसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेत्ता) प्राणातिपातंजीवों को मार करके, झूठ बोल करके और तथारूप श्रमण एवं माहन की अप्राप्सुक एवं एषणादोष से दूषित एसे अशन, पान, खाद्य स्वाधरूपं आहार द्वारा प्रतिलाभित करके (एवं खलु जीवा अप्पाउयत्ताए कम्म पकरेंति ) किस कारण से जीव अल्पायुष्यता का उपार्जन करने के लिये कम का बंध किया करते हैं। (कह णं भंते । जीवा दीहाउयत्ताए कम्म भविशेषनी पंतव्यता(कह णं भैते!) त्याह सूत्रार्थ:-(कहण भंते ! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरें ति?) भगवान ल ४या या ४१२pथी मायुष्यना मध ४रे छ । (गोयमा !) गौतम! (तिहिं ठाणेहि) स्थान मेटले ४ार ने सीधे पायुध्यताना निमित्त ३५ भनी ५५ रे छ (तं जहा) तेत्र स्थान३५ ४ारण। नये प्रभारी छे. (पाणेअईवाएत्ता, मुंसंवत्ता, तहारूव समण वा माहणं वा अफासुएणं, अणेसणिज्जेणं असंण पाण खाइम-साइमेण पडीलाभत्ता) प्राण हिंसा ४शन, मसत्य બોલીને, અને નિરતિચારપૂર્વક સંયમનું પાલન કરનાર શ્રમણ અને માહલને અમાસુક, (દોષયુક્ત) કજે નહીં એ ચાર પ્રકારને આહાર-અશન, પાન, भाध भने स्वाध-वहारावीन ( एवं खलु जीवा अल्पाउयत्ताए कम्म पकरेंति) આ રીતે જીવ અપાયુષ્ય ઉપાર્જન કરવાના કર્મને બંધ બાંધ્યા કરે છે.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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