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________________ ३३० . . . भगवती टेणं जाव-उव-दसेत्तए ' तत् तेनार्थेन श्रुतकेवली यावत् 'घटादिकात् घटादि सहस्रमभिनिर्वयं उपदर्शयितुं समर्थः । गौतमः उपर्युक्तं स्वीकुर्वनाह-' सेवं भंते । सेव भंते ! ति। हे भदन्त ! तदेवं-गवदुक्त सर्व सत्य, तदेव-भवदुक्तं सर्व सत्यमित्यर्थः ॥ ० १६ ॥ .. . इति श्री विश्वविख्यात - जगबल्लभ - प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाकलि: .. तललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-बादिमानमर्दक- . - श्रीशाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजमदत्त ' जैनशास्त्राचार्य ' पदभूपित- . कोल्हापुरराजगुरु-वालग्रहाचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालबतिविरचिताश्री भगवतीसूत्रस्य प्रसेयन्द्रिकाख्यायां ... - व्याख्यायां पञ्चमशतकस्य चतों देशकः समाप्तः ॥५-४॥ से परिणमित हो सकता है। इसके सिवाय अन्य भेद वाले पुद्गल नहीं अब अन्त में इस विषय का उपसंहार करते हुए वनकार कहते हैं कि से तेणद्वेणं जाव पबदलेतए इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि श्रुतकेवली यावत् हजार घटादि कों को निष्पन्न करके लोगों को दिखाने के लिये समर्थ है। उपर्युक्त विषय को स्वीकार करते हुए प्रभु से कहते हैं । सेवं भंते! सेवं भते! ति ' हे भदन्त । जैसा आप देवानुप्रिय ने यह विषय कहा है वह सर्वथा सत्य ही है हे भदन्त ! वह सर्वथा सत्य ही है " लू० १६" |पंचम शतक का यह चतुर्थ उद्देशक समाप्त हुभा ॥५-४॥ . તેનું કારણ નીચે પ્રમાણે છે– ઉરિકા પુદ્ગલ જ ધડા, વ આદિ રૂપ પરિણમી શકે છે. બાકીના ચારે પ્રકારનાં પુદગલો એ રીતે પરિણમી શકતા નથી. હવે વિષયને ઉપસંહાર ४२ता सूत्रा२ ४१ छे-( से तेणदंठेण जाव उवदंसेत्तए) गीतम! ते મેં એવું કહ્યું છે કે શ્રત કેવળી એક ઘડામાંથી હજાર ઘડાનું નિર્માણ કરી બતાવવાને સમર્થ હોય છે * મહાવીર પ્રભુનાં વચનમાં અપાર શ્રદ્ધા વ્યક્ત કરતાં, ગૌતમ ગણધર छ-(सेव भंते ! सेव भंते ! ति) हे महन्त! विषयमा २ ४ह्यु- સર્વથા સત્ય છે. આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે. સૂ. ૧૬ || पांयमा शताना याय। देश सभात ॥ ५-४ ॥
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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