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________________ shreefont टीका ० ५ ३०४ सू० १६ चतुर्दश पूर्वघर शक्ति निरूपम् સુર कंडाओ कडसहस्से, रहाओ रहसहस्से, छत्ताओ छत्तसहस्से, दंडाओ दंडसहस्सं अभिनिव्बट्टेत्ता उवदंसेत्तए ? ' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त । चतुर्दशपूर्वी चतुर्दश पूर्वधारी श्रुतकेवली इत्यर्थः घटात् एकं घट सहायतया अवधि कृश्वा आश्रित्य इत्यर्थः घटसहस्रम् सहस्रघटानित्यर्थः अभिनिर्वर्त्य निष्पाद्यं श्रुतज्ञानोत्पन्नलब्धिविशेषेण उपदर्शयितुं प्रभुः समर्थः किम् इति अभिसम्बन्धः, एवं पटात् पटसदखम्, कटात् ' चटाई' इति भानावसिद्वद्रव्यात् कडसहसम् रथात् रथसहस्रम् छत्रात् छत्रसहस्रम् दण्डात्-दण्ड सहस्रम् अभिनिर्वत्य अभिनिष्पाद्य श्रुतसरलब्धि विशेषेण उपदर्शयितुं समर्थः किम् ? इतिपूर्ववदन्वय सम्बन्धः । " , भगवानाह - 'हंता, भ्रू' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् - श्रुतकेवली एकघटादिक माश्रित्य सहस्रघटादिकं निष्पादयितुं प्रभुः समर्थः इत्यर्थः । गौतमस्त्र हेतु वस्त्र में से हजारों वस्त्रों को, ( कडाओ कडसइस्स ) एक चटाई में से हजारों घटाईयों को, (रहाओ रहसहस्सं) एक रथमें से हजारों रथों को (छत्ताओ छत्तसहस्स) एक छत्र में से हजारों छात्रों को, (दंडाओ दडसहस्स) एक दण्ड में से हजार दण्डों को (अभिनिव्वहेत्ता) निष्पन्न कर ( उवसेत्तए) दिखला सके ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं ( हंता पभू ) हे गौतम! ऐसा कर सकने के लिये वह समर्थ है- अर्थात्-एक घड़े में से वह हजारों घड़ों को निष्पन्न कर दिखला सकता है । तात्पर्य कहने का यह है कि श्रुतकेवली को श्रुतज्ञान के प्रभाव से ऐसी लब्धि प्राप्त हो जाती है, जो वह एक घट की सहायता से ही उसके सहारे से ही - हजारों घटों को निष्पन्न कर दिखला सकता है ! अब गौतम स्वामी ऐसा कर सकने में क्या कारण है इस बात को जानने की अभिलाषा से प्रभु से पूछते हैं - ( से केण्डेणं पभू चउद्दसपुच्ची जाव उवद यासांथी डलरो थटाओ ( रहाओ रहसहस्सं ) मे रथभांथी डलरो २थ, (छत्ताओ छत्तसहस्त्र ) मे छत्रभांथी इन्न। छत्र, (दंडोओ दंडसहस्स ) A AS 'CHIAL GMA esj ( afufasam) Muig sdá ( caçàm ) જી' અતાવી શકવાને તેઓ સમર્થ છે ખરાં ? उत्तर- (हंता पभू) हे गौतम । तेो तेभ पुरी शहवाने समर्थ छे. તેઓ એક ઘડામાંથી હજારો ઘડાનું નિર્માણ કરી શકે છે. શ્રુતકેવળીને શ્રુતજ્ઞાનના પ્રભાવથી એવી લબ્ધિની પ્રાપ્તિ થાય છે કે તેએ એક ઘડાની મદદથી હજાર ઘડાઓનું નિર્માણ કરી ખતાવવાને સમર્થ હાય છે હવે તેનું કારણ જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે है (से केणर्वेण ं पभू चउद्दसपुव्वी जाव उवदसे तर १) डे हन्त ! यह पूर्व
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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