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________________ प्रमेयवन्द्रिका टी० ० ५ ०४ सू० ९ प्रमाणस्वरूपनिरूपणम् ग्रहीतव्यं नतु आगमरूपम् , तस्य खलु आगमस्य वक्ष्यमाणप्रमाणान्तर्गतत्वेनैव ग्रहीष्यमाणतया 'श्रुत्वा' इति शब्देन ग्रहणे असंगतत्वापत्तेः। सू०.८॥ मूलम्-“से किं तं पमाणे? पमाणे चउविहे पण्णते, तंजहापञ्चक्खे १, अणुमाणे २, ओवम्मे ३, आगमे ४, जहा. अणुओगदारे तहा यवं पमाणं जाव तेण परं. नो अत्तागमे, णो अणंतरागमे परंपरागमे" ॥ सू०९॥ . छाया-अथ किं तत् प्रमाणम् ? प्रमाणं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा प्रत्यक्षम्', अनुमानम् २, उपमानम् ३, आगमः ४, यथा अनुयोगद्वारे तथा ज्ञातव्यं प्रमा.. णम्, यावत्-तेन परं नो आत्मागमः, नो अनन्तरागमः, परम्परागमः । सू०९॥ ., यहां पर " श्रुत्वा" इस पद से ज्ञान का निमित्त होने के के कारण केवल केवली भगवान का सामान्यवचन ही ग्रहण करना चाहिये आगम प्रमाणरूप उनका वचन ग्रहण नहीं करना चाहिये। क्यों कि आगे प्रमोण का वर्णन किया जावेगा सो आगम का भी उसी में वर्णन कहा जावेगा अतः श्रुत्वा' पद से यहां आगमरूप वचन के ग्रहण माननेमें असंगतता की आपत्ति आवेगी । सन ८॥ 'से किं तं पमाणे!' इत्यादि। सूत्रार्थ-(से किं तं पमाणे) हे भदन्त | प्रमाण पद का क्या अर्थ है ? (पमाणे चविहे पण्णत्ते) हे गौतम! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । (तंजहा) उसके वे चार प्रकार ये हैं-(पच्चक्खे, अणु परना सूत्रमा “ सोच्चा (श्रुवा)" ५४थी उपक्षी माननां सामान्य વચનને જ ગ્રહણ કરવુ-આગમ પ્રમાણરૂપ તેમનું વચન ગ્રહણ કરવું જોઈએ નહીં. કારણ કે હવે પછીના પ્રકરણમાં પ્રમાણુનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવશે, આગમનું વર્ણન પણ તેમાં કરાશે. “શ્રવા” ( સાંભળીને) પદ દ્વારા આગમ, રૂ૫ વચનને ગ્રહણ કરવાથી અસંગતતા ઊભી થવાનો સંભવ રહેશે. તેથી” આટલી સૂચના ધ્યાનમાં લેવી. એ સૂ ૮ " से किं तपमाणे "त्यादि सूत्राथ-(से कि त पमाणे १) सहनत 'प्रमाणु पनी म थाय छ १ (पमाणे चउविहे पण्ण" गौतम ! प्रभारना या२ २ छ (तंज़हा) ते यार । नीचे प्रमाणे छ-( पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे,
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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