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________________ 'प्रमेयमन्द्रिका टीका' श०५ ३० ४ सू० ८ केवली छद्मस्थनिरूपणम् - ૨૭: जीवविशेषमवश्यमेव जानाति पश्यति इत्याशयः । गौतमः पृच्छति' जहाणं भंते ! केवली अंतकरं वा, अंतिम सरीरियं वा, जाणइ, पासड़, छउमत्थे वि अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ, पासइ ? ' यथा खलु भदन्त ! केवली अन्तकरं वां, अन्तिमशरीरकं वा, जानाति, वश्यति, तथा खलु छद्मस्थोऽपि अन्तकरं वा'सर्वदुःखान्तकारकम्, अन्तिमशरीरिकं वा यस्य यच्छरीरानन्तरं शरीरधारणं न भवति तं चरमशरीरधारिणमित्यर्थः जानाति, पश्यति ? भगवानाह - ' गोयमा ! णो इण्डे जाणइ पासइ ' हाँ गौतम ! केवलज्ञान द्वारा और केवल दर्शन द्वारा दुःखान्त कर को एवं चमर शरीर धारी जीव विशेष को जानता है और देखता है । क्यों कि इस ज्ञान का माहात्म्य ही ऐसा है । अब गौतम प्रभु से इस बात को जानना चाहते हैं कि-' जहा णं भंते . ! केवली अंनकर वा अंतिमसरीरियं वा जाणइ पासइ, तहा णं छउमत्थे वि अंतकर वा अंतिमसरीरियं वा जाणद पासह' हे भदन्त ! जिस प्रकार से केवलज्ञानी केवलज्ञान और केवलदर्शन के माहात्म्य से अन्यकर को तथा चरमशरीरधारी जीव को जानता और देखता है, उसी प्रकार से छद्मस्थजीव भी अन्तकर को या अन्तिमशरीरधारी जीव को अपने ज्ञान द्वारा ११ वे गुणस्थानवर्ती जीव की अपेक्षा अव धि मन:पर्ययज्ञान द्वारा जानता देखना है क्या ? जो जीव गृहीत शरीर को छोड़ने के बाद फिर और दूसरा नवीन शरीर धारण नहीं करता है वह चरम शरीरीकहा गया है। इसके समाधान निमित्त प्रभु गौतम से હા, ગૌતમ ! કેવળજ્ઞાની પેાતાના કેવળ જ્ઞાન વડે અને કેવળ દૃન વડે દુઃખાન્તર અને ચરમ શરીરધારી જીવને જાણી શકે છે, અને દેખી શકે છે, કારણ કે તે પ્રકારના જ્ઞાનમાં એ સામર્થ્ય રહેલુ હાય છે. डवे गौतभस्वाभी भडावीर प्रभुने जीले प्रश्न १रे छे - " जहाणं भवे ! केवली अंतकरं वा अतिमसरीरियं जाणइ वा पासइ " हे लहन्त ! देवी रीते કેવળજ્ઞાની કેવળ જ્ઞાન અને કેવળ દનના પ્રભાવથી અન્તકર તથા ચરમ शरीरधारी भवने लगी राडे छे भने हेमी शडे छे, "तहाणं छमत्थे वि अतकर वा अतिमसरीरिय वा जाणइ पासइ ” એવી રીતે શું છદ્મસ્થ મનુષ્ય પણ પેાતાના જ્ઞાન દ્વારા (૧૧ માં અને ખારમાં ગુણુસ્થાનવી જીવની અપેક્ષાએ અવિધમનઃ પય જ્ઞાન દ્વારા ) અતકર અને ચરમ શરીરધારી જીવને જાણી શકે છે અને દેખી શકે છે ? (જે જીવ પેાતાના ચાલુ ભવના શરીરને છોડીને ફરીથી નવું શરીર ધારણ કરતા નથી, એટલે કે મેાક્ષે જાય छे, तेने यरभ शरीरी उडे छे.)
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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