SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयबान्द्रका टीका श० ५ उ0 ४ सू०५ शिष्यव्यस्वरूपनिरूपणम् २४६ वन्देते, नमख्यतः, वन्दित्वा, नमस्थित्वा, मनसा चैत्र शुश्रूषमाणौ, नमस्यन्तौ, अभिमुखौ यावत्-पर्युपासाते । तस्मिन् काले, तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिनाम अनगारो यावत्-अदरसामन्ते, अर्ध्वजानुः, यावत्-विहरति, ततस्तस्य भगवतो गौतमस्य ध्यानान्तरिकायां वर्तमानस्य अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिको यावत्-समुदपद्यत-एवं खलु द्वौ देवौ महर्षिको, यावत्-महानुभागौ श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकं प्रादुर्भूतौ, उन्हों ने श्रमण भगवान महावीर की स्तुति की और उन्हें नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके मन से ही शुश्रूषा करते हुए और नमस्कार करते हुए वे दोनों देव फिर भगवान महावीर के समक्ष पेठ गयेयावत् भगवानकी पर्युपासना करने लगे। (तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल और उस समय में (समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंते: वासी इंदभूइ णाम अणगारे जाव अदूरसामंते उर्दू जाणू जाव विहरइ) श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार यावत् न बहुत दूर और न पहुत पास अर्थात् उचित स्थान पर उर्ध्व जानु करके यावत् बैठे हुए थे। (तएणं तस्स भगवओ गोयमस्स झाणंतरियाए वहमाणस्स इमेयाख्वे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था) जब उन अगवान् गौतम का ध्यान संपूर्ण हो चुका तब उन्हें यह ऐसा आध्यात्मिक यावत् संकल्प उद्भूत हुआ ( एवं खलु दो देवा हिडिया जाव महाणुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउन्भूया) તેમણે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની સ્તુતિ કરી, વંદના કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદના નમસ્કાર કરીને મનથી જ ભગવાનની શુશ્રષા કરતાં અને ભગવાનને નમસ્કાર કરતાં તેઓ મહાવીર પ્રભુ સમક્ષ બેસી ગયા, અને તેમની પર્યું. पासना ४२१॥ सा गया (तेणं कालेणं तेणं समएणं) ते आणे भने त समये (समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अतेवासी इंदभूइ णाभं अणगारे जाव अदरसमिते उड्ढ जाणू जाव विहरइ) श्रम समान महावीरना भुभ्य.शिष्य ઈન્દ્રભૃતિ નામના અણુગાર, તેમનાથી બહુ દૂર પણ નહી અને બહુ નજીક પણ नडी वा स्थान 6 मे ता (तएणं तस्स भगाओ गोयमस्स झाणं. तरियाए वहमाणरस इमेयारूवे अज्झथिए जाय समुपज्जित्था) न्यारे ते भगवान ગૌતમનું ધ્યાન સંપૂર્ણ થયું, ત્યારે તેમના મનમાં આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક विया२ थयो. (एव खलु दो देवा महिदिया जाव महाणुमागा खमणम्स भयगओ महावीरस्स अंतिय पाउम्भूया) अभय मावान महावीरनी सभी महाऋद्धि भने
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy