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________________ भगवती सूत्रे कक्षा-प्रतिग्रह- रजोहरणम् - कक्षायां प्रतिग्रहकं पात्रं रजोहरणं चादाय गृहीत्वा बहिः प्रदेशे संस्थितो विहाराय वामकक्षे रजोहरणं धृत्वा हस्ते सोदकपात्रिकां गृहीत्वा शरीरचिन्वानिवारणार्थं गतवान् इत्यर्थः । ' तरणं अतिमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहाणं पासइ ' ततः खलु अतिमुक्तः कुमारश्रमणः वहमानमेकं वाहकं जलप्रवाहम् पश्यति, 'पासित्ता मट्टियाए पार्लि बंधड़ ' दृष्ट्वा च मृत्तिकया पालिम् आलवालheri acनाति ' वंधत्ता णात्रियाये णाविया मे नाविओ विया णाव मयं पडिग्गहगं उदगंत कहु पव्वाहमाणे, पन्चाहमाणे, अमिरमइ' बद्धा पार्लि निर्माय 'नौका मम, नौका मम' इति व्याहरन् नाविकइव नावम्, यथा कर्णधारः रजोहरण को लेकर एवं हाथ में पात्र को लेकर बहिः प्रदेश में शरीर की चिन्ता निवारण करने के लिये -मुनियों के साथ बहार भूमि गये ( तरणं अहमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वहमानं पासइ) जाते हुए इन्हों ने किसी एक स्थान पर वर्षा के कारण वहते हुए पानी को देखा । (पासित्ता महियाए पालि बंधइ ) बहते हुए पानी को देखकर उन्हों ने उसमें पानी रोकने के अभिप्राय से मिट्टी से पाली बांध दी । ( बंधिन्ता णाविया मे णाविया मे णाविओ विव णावमयं डिग्गहणं उदगंसि कट्टु पव्वाहमाणे अभिरमइ) पाली बांधकर उसमें अपने पात्र को रखकर वोले ' यह मेरी नौका है यह मेरी नौका है ' इस प्रकार मानसिक विकल्प करते हुए ये पात्र को पानी में तिराते हुए नाविक की तरह वहां पर पानी में अपने पात्र को बहा २ कर क्रीडा करने लगे-तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार कोई नाविक - कर्णधार नौका २३२ गह- रयहरणमाया बहिया संगठिए विहाराए " तेसो तेभनी भगसभां श्लेडर ધારણ કરીને અને હાથમાં પાત્ર લઇને શૌચક્રિયા કરવાને માટે ( ઝાડે ફરવાને भाटे ) महार नीडज्या " तरणं अडमुत्ते कुमारसमणे वाहय वाहमान पास જતાં જતાં રસ્તામાં તેમણે એક સ્થાને વરસાદના પાણીના પ્રવાહને વહેતા ܙܕ ये. " पासित्ता महियाए पालि बंधइ " वडेता पाणीनी धाराने लेधने तेमा पाथी रोवाने भाटे भाटी वडे याज गांधी "बंधिता णाविया मे णाविया मे, णाविओवि व णात्रमय पहिणं उदसि कट्टु पव्वाहमाणे पव्वाहमाणे अभिरमइ " પાણીના પ્રવાહ આડી પાળ ધીને પાણીમાં પેાતાના પાત્રને તરતું મૂકીને मोसी हठया, “ मा भारी नौड़ा छे, भा भारी नौडा छे " આ રીતે મનમાં કલ્પના કરતાં કરતાં તેઓ નાવિકની જેમ પેાતાના પાત્રરૂપી નાવડીને પાણીમાં તાવતા તરાવતા ક્રીડા કરવા લાગ્યા. કહેવાનું તાત્પ એ છે કે જેમ કાઈ નાવિક તેની નાવડીને જળપ્રવાહમાં તરાવે છે, એવી રીતે ખાલમુનિ અતિમુકતક
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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