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________________ २३० भंगतीने कालेणं' इत्यादि । 'तेणं कालेणं तेण समएणं' तस्मिन्काले तस्मिन् समये समणस भगवओ महावीरस्स अंतेवासी' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तेवासी शिष्या अहमुत्ते णाम कुमारसमणे पगइ भद्दए, जाव-त्रिणीए' अतिमुक्तो नाम कुमार. श्रमण पडवावस्थायामेव प्रवजितत्वेन कुमारश्रमण इत्युक्तम्, आह च-" छन्वरिसो पन्चइओ निग्रोथं रोइलण पावयणं " त्ति, पड्वपः प्रवजितो नग्रन्थं रोच. यित्वा प्रवचनम् । अयमेवात्राश्चर्यजनकत्तान्तः. अन्यथा वाष्टकात्मा प्रवन्या दोननिषेधात् । अथ अतिमुक्तस्य विशिष्टतामाह- पराइभदए जाव विणीए प्रकृति आश्चर्य जनक वृत्तान्त इस सूत्र द्वारा कहा जा रहा है । तेणं कालेण तेणं समएणं ' उस काल और उस समय में 'समणस्स भगवओ महावीरस्ल अंतेवासी' श्रमण भगवान महावीर के शिष्य ' अइमुत्ते णामं कुमारसमणे' अतिमुक्त नामके कुमार श्रमण पगइभदए जाव विणीए' जो कि स्वभाव से ही भद्र यावत् विनीत थे, अतिमुक्त कुमार श्रमण ने ६ वर्ष की अवस्था में ही दीक्षा धारण की थी इसलिये इन्हें कुमार श्रमण कहा गया है । कहा भी है “ छच्चरिसोपवइओ निग्गंथं रोहऊण पावयणं " अर्थात् निम्र: न्य प्रवचन पर श्रद्धा रखकर अतिमुक्त कुमारश्रमण ६ वर्ष की वय में दीक्षित हुए"। यह बात आश्चर्य जनक इसलिये प्रकट की गई है कि दीक्षा आठ वर्ष से कुछ अधिक उन्नर वाले को दी जानी है कारण कि साधिक आठ वर्ष के पहिले प्रव्रज्याग्रहण करने का निषेध सिद्धान्त में किया गया है। अब सूत्रकार अतिमुक्त की विशिष्टता प्रकाशित करते વીર પ્રભુના એક અંતેવાસી અતિમુક્તકનું વૃત્તાન્ત આપવામાં આવ્યું છે. "तेणं कालेणं तेणं समएण' ते ४ाणे मने त समये " समणस्स भगवओ महावीरस्स अतेवासी" श्रम लगवान महावीरना शिष्य " अइमुत्ते काम कुमारसमणे" मतिभुत नामना मे मासश्रम ता " पगइभहए जब विणीए " तो मनि स्पसावना भने विनीत पय-तना गुथी युत उता. તેમણે ૬ વર્ષની ઉમરેજ દીક્ષા અંગીકાર કરી હતી. તેથી તેમને शुभार श्रम ४ा छ. ४युं ५५ छ है "छबरिसो पव्वइओ निग्गथं रोइऊण पावयणं " " निधन्य अवयन ५२ श्रद्धा सभीने मतिभुत शुभारे ७ वर्षनी ઉમરે દીક્ષા લીધી ” આ વાતને આશ્ચર્યજનક માનવાનું કારણ એ છે કે આઠ વર્ષ કરતાં ઓછી ઉમરે દીક્ષા આપવાને સિદ્ધાંતમાં નિષેધ કરાવે છે: હવે સૂત્રકાર અતિમુક્તક બાલશ્રમણના ગુણોનું વર્ણન કરતા કહે છેपगइभदए जाव विणीए" ते! स्वभाव सादि-स२०१० लावना हुता मन
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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